एक तालाब में एक कछुआ रहता था। उसी तालाब में दो हंस भी तैरने आया करते थे। हंस बहुत हंसमुख और मिलनसार स्वभाव के थे, इसलिए कछुए और हंस में दोस्ती होते देर नहीं लगी। कुछ ही दिनों में वे बहुत अच्छे दोस्त बन गएं। हंसों को कछुए का धीरे-धीरे चलना और उसका भोलापन बहुत अच्छा लगता था।
हंस बहुत बुद्धिमान भी थे, वे कछुए को अनोखी बातें बताते, ॠषि-मुनियों की कहानियां सुनाते। हंस दूर-दूर तक घूमकर आते थे, इसलिए उन्हें सारी दुनिया की बहुत-सी बातें पता होती थी। दूसरी जगहों की अनोखी बातें वो कछुए को बताते, कछुआ मंत्रमुग्ध होकर उनकी बातें सुनता। बाकी तो सब ठीक था, पर कछुए को बीच में टोका-टाकी करने की बहुत आदत थी। अपने सज्जन स्वभाव के कारण हंस उसकी इस आदत का बुरा नहीं मानते थे। गुज़रते व़क्त के साथ उन तीनों की दोस्ती और गहरी होती गई।
एक बार भीषण सूखा पड़ा, बरसात के मौसम में भी एक बूंद पानी नहीं बरसा, इससे तालाब का पानी सूखने लगा। प्राणी मरने लगे, मछलियां तो तड़प-तड़पकर मर गईं, तालाब का पानी और तेज़ी से सूखने लगा। एक समय ऐसा भी आया कि तालाब में पानी की बजाय स़िर्फ कीचड़ रह गया। कछुआ बहुत संकट में पड़ गया, उसके लिए जीवन-मरण का प्रश्न खड़ा हो गया, वहीं पड़ा रहता तो कछुए का अंत निश्चित था। हंस अपने मित्र पर आए संकट को दूर करने का उपाय सोचने लगे। वे अपने मित्र कछुए को ढाढ़स बंधाने का प्रयास करते और हिम्म्त न हारने की सलाह देते। हंस केवल झूठा दिलासा नहीं दे रहे थे। वे दूर-दूर तक उड़कर समस्या का हल ढूढ़ते। एक दिन लौटकर हंसों ने कहा, "मित्र, यहां से पचास कोस दूर एक झील है। उसमें काफ़ी पानी हैं तुम वहां मज़े से रहोगे।" कछुआ रोनी आवाज़ में बोला, "पचास कोस? इतनी दूर जाने में मुझे महीनों लग जाएंगे, तब तक तो मैं मर जाऊंगा।" कछुए की बात भी ठीक थी, हंसों ने अक्ल लगाई और एक तरीक़ा सोच निकाला।
वे एक लकड़ी उठाकर लाए और बोले, "मित्र, हम दोनों अपनी चोंच में इस लकडी के सिरे पकड़कर एक साथ उड़ेंगे। तुम इस लकड़ी को बीच में से मुंह से थामे रहना। इस प्रकार हम उस झील तक तुम्हें पहुंचा देंगे, उसके बाद तुम्हें कोई चिन्ता नहीं रहेगी।"
उन्होंने चेतावनी दी "पर याद रखना, उड़ान के दौरान अपना मुंह न खोलना, वरना गिर पड़ोगे।"
कछुए ने हामी में सिर हिलाया। बस, लकड़ी पकड़कर हंस उड़ चले। उनके बीच में लकड़ी मुंह में दाबे कछुआ। वे एक कस्बे के ऊपर से उड़ रहे थे कि नीचे खड़े लोगों ने आकाश में अदभुत नज़ारा देखा। सब एक-दूसरे को ऊपर आकाश का दृश्य दिखाने लगे। लोग दौड़-दौड़कर अपने छज्जों पर निकल आए, कुछ अपने मकानों की छतों की ओर दौड़े, बच्चे, बूढ़े, औरतें व जवान सब ऊपर देखने लगे। ख़ूब शोर मचा।
कछुए की नज़र नीचे उन लोगों पर पड़ी। उसे आश्चर्य हुआ कि उन्हें इतने लोग देख रहे हैं। वह अपने मित्रों की चेतावनी भूल गया और चिल्लाया "देखो, कितने लोग हमें देख रहे है!"
उसने जैसे ही अपना मुंह खोला कि आकाश से गिर पड़ा। ऊंचाई बहुत ज्यादा होने के कारण वह चोट झेल नहीं पाया और अपना दम तोड़ दिया।
प्यारे दोस्तों! "भगवान ने हमें दो कान और एक मुंह सोच समझ कर दिया है, जिससे हम बातों को ध्यान से सुने और समझदारी से बोले। अगर कछुए ने समझदारी से चेतावनी को सुना होता और गलत समय पर अपना मुंह नहीं खोला होता तो उसकी जान बच जाती।"
यदि आपको यह कहानी पसंद आई हो तो हमें कमेंट बॉक्स में लिख कर जरूर बताएं और अगर आप लोगों के पास भी मजेदार पंचतंत्र की कहानियां हो तो हमें लिखकर भेजना ना भूले। दोस्तों! हमारी वेबसाइट को आपके सहयोग और प्यार की जरूरत है, इसलिए हमारी पोस्ट को शेयर करना ना भूले। आप सभी के सहयोग का बहुत-बहुत धन्यवाद।
हम जल्द ही आपसे अगली कहानी के साथ मिलेंगे। तब तक अपना ध्यान रखिए और खुश रहें।
Story By - Panchatantra Ki Kahiya
Post By - Khushi
हंस बहुत बुद्धिमान भी थे, वे कछुए को अनोखी बातें बताते, ॠषि-मुनियों की कहानियां सुनाते। हंस दूर-दूर तक घूमकर आते थे, इसलिए उन्हें सारी दुनिया की बहुत-सी बातें पता होती थी। दूसरी जगहों की अनोखी बातें वो कछुए को बताते, कछुआ मंत्रमुग्ध होकर उनकी बातें सुनता। बाकी तो सब ठीक था, पर कछुए को बीच में टोका-टाकी करने की बहुत आदत थी। अपने सज्जन स्वभाव के कारण हंस उसकी इस आदत का बुरा नहीं मानते थे। गुज़रते व़क्त के साथ उन तीनों की दोस्ती और गहरी होती गई।
एक बार भीषण सूखा पड़ा, बरसात के मौसम में भी एक बूंद पानी नहीं बरसा, इससे तालाब का पानी सूखने लगा। प्राणी मरने लगे, मछलियां तो तड़प-तड़पकर मर गईं, तालाब का पानी और तेज़ी से सूखने लगा। एक समय ऐसा भी आया कि तालाब में पानी की बजाय स़िर्फ कीचड़ रह गया। कछुआ बहुत संकट में पड़ गया, उसके लिए जीवन-मरण का प्रश्न खड़ा हो गया, वहीं पड़ा रहता तो कछुए का अंत निश्चित था। हंस अपने मित्र पर आए संकट को दूर करने का उपाय सोचने लगे। वे अपने मित्र कछुए को ढाढ़स बंधाने का प्रयास करते और हिम्म्त न हारने की सलाह देते। हंस केवल झूठा दिलासा नहीं दे रहे थे। वे दूर-दूर तक उड़कर समस्या का हल ढूढ़ते। एक दिन लौटकर हंसों ने कहा, "मित्र, यहां से पचास कोस दूर एक झील है। उसमें काफ़ी पानी हैं तुम वहां मज़े से रहोगे।" कछुआ रोनी आवाज़ में बोला, "पचास कोस? इतनी दूर जाने में मुझे महीनों लग जाएंगे, तब तक तो मैं मर जाऊंगा।" कछुए की बात भी ठीक थी, हंसों ने अक्ल लगाई और एक तरीक़ा सोच निकाला।
वे एक लकड़ी उठाकर लाए और बोले, "मित्र, हम दोनों अपनी चोंच में इस लकडी के सिरे पकड़कर एक साथ उड़ेंगे। तुम इस लकड़ी को बीच में से मुंह से थामे रहना। इस प्रकार हम उस झील तक तुम्हें पहुंचा देंगे, उसके बाद तुम्हें कोई चिन्ता नहीं रहेगी।"
उन्होंने चेतावनी दी "पर याद रखना, उड़ान के दौरान अपना मुंह न खोलना, वरना गिर पड़ोगे।"
कछुए ने हामी में सिर हिलाया। बस, लकड़ी पकड़कर हंस उड़ चले। उनके बीच में लकड़ी मुंह में दाबे कछुआ। वे एक कस्बे के ऊपर से उड़ रहे थे कि नीचे खड़े लोगों ने आकाश में अदभुत नज़ारा देखा। सब एक-दूसरे को ऊपर आकाश का दृश्य दिखाने लगे। लोग दौड़-दौड़कर अपने छज्जों पर निकल आए, कुछ अपने मकानों की छतों की ओर दौड़े, बच्चे, बूढ़े, औरतें व जवान सब ऊपर देखने लगे। ख़ूब शोर मचा।
कछुए की नज़र नीचे उन लोगों पर पड़ी। उसे आश्चर्य हुआ कि उन्हें इतने लोग देख रहे हैं। वह अपने मित्रों की चेतावनी भूल गया और चिल्लाया "देखो, कितने लोग हमें देख रहे है!"
उसने जैसे ही अपना मुंह खोला कि आकाश से गिर पड़ा। ऊंचाई बहुत ज्यादा होने के कारण वह चोट झेल नहीं पाया और अपना दम तोड़ दिया।
शिक्षा -
प्यारे दोस्तों! "भगवान ने हमें दो कान और एक मुंह सोच समझ कर दिया है, जिससे हम बातों को ध्यान से सुने और समझदारी से बोले। अगर कछुए ने समझदारी से चेतावनी को सुना होता और गलत समय पर अपना मुंह नहीं खोला होता तो उसकी जान बच जाती।"
यदि आपको यह कहानी पसंद आई हो तो हमें कमेंट बॉक्स में लिख कर जरूर बताएं और अगर आप लोगों के पास भी मजेदार पंचतंत्र की कहानियां हो तो हमें लिखकर भेजना ना भूले। दोस्तों! हमारी वेबसाइट को आपके सहयोग और प्यार की जरूरत है, इसलिए हमारी पोस्ट को शेयर करना ना भूले। आप सभी के सहयोग का बहुत-बहुत धन्यवाद।
हम जल्द ही आपसे अगली कहानी के साथ मिलेंगे। तब तक अपना ध्यान रखिए और खुश रहें।
Story By - Panchatantra Ki Kahiya
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