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चालाक सियार और सीधे ऊँठ की कहानी | पंचतन्त्र

एक बार एक जंगल में एक शेर था, जो वहाँ राज करता था। उसका नाम महाराज था। उसके पास एक सियार और एक कौवा काम करते थे। हमेशा की तरह वे लोग जंगल में घूम रहे थे। तभी शेर ने कुछ दूरी पर एक ऊँठ को देखा, यह ऊँठ अपने कारवाँ से बिछड़ गया था और अपना गुजारा जंगल की हरी घास खाकर कर रहा था।

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शेर ने सोचा की यह अलग तरह का जानवर कौन है चल के पता लगाते है, तभी कौआ जो दूर-दूर जाता रहता था बोला! मालिक इस जानवर का माँस काफी स्वादिष्ट होता है। हम इसे मार कर खा लेते है।
पर शेर नहीं माना और बोला, "यह जंगल का मेहमान बनकर आया है, जाकर उसे दिलासा दो की उसे यहाँ पर कोई परेशान नहीं करेगा और वो यहाँ सुरक्षित है।"

शेर ने ऊँठ को बुलाया और कहा, ताउम्र यहाँ आनंद से रहो। ऊँठ ने शेर को सारी कहानी बताई की वह किस तरह अपने कारवाँ से बिछड़ गया, उसने शेर को धन्यवाद दिया। अब ऊँठ ने जंगल में ही रहने का निर्णय ले लिया।

एक दिन शेर का सामना एक पागल हाथी के साथ हुआ। उस हाथी ने शेर को इतना घायल कर दिया था की शिकार करना तो दूर शेर चल भी नहीं पा रहा था। इस तरह वह खाने के बिना कमजोर हो गया। शेर ने सियार और कौवा को शिकार लाने को कहा।

वहां दोनों जंगल में शिकार ढूंढने जा ही रहे थे तभी उन्होंने सोचा कि जंगल में जाने की क्या जरूरत है, जब हमारे सामने ही शिकार है। दोनों का इशारा ऊँठ की तरफ था।
कौवे ने कहा, महाराज ने ऊँठ को वचन दिया है कि वह यहां सुरक्षित है और उसे कोई नुकसान नहीं होगा। वो ऊँठ को मारने के लिए तैयार नहीं होंगे।
तभी सियार बोला, यह सब मुझ पर छोड़ दो, मैं महाराज को मना लूगा।

सियार शेर के पास गाया और कहां, "महाराज! हम दोनों ने आपके लिए शिकार की खोज की पर कोई शिकार नहीं मिला, तो क्यो न हम ऊँठ को मारकर खा जाए।"
शेर तपाक से बोला, "यह करना पाप होगा”।
सियार ने कहा, "अगर ऊँठ खुद आप को कहे की आप मुझे खा लीजिए, तब तो आप उसका शिकार करेंगे?"
शेर ने उत्तर दिया, "हाँ क्यो नहीं! पर यह होगा कैसे?"
सियार ने कहा, "हम अगर अपने महाराज के आवश्यकता के समय काम नहीं आते तो हमारे जीने का क्या फायदा।"

सियार के मन में एक योजना थी और उसने वह योजना जंगल के बाकी सभी जानवरों को बता दी थी सिवाय उठके।
इसके बाद सियार ने सभी जानवरो को इकठ्ठा किया और बोला कि हमारे महाराज बीमार और कमजोर हो गए है इसलिए हमे उन्हे बचाने के लिए कुछ करना होगा।
सभी जानवर शेर के सामने जाकर खड़े हो गए और और नाटक करते हुए कहने लगे कि हम खाना ढूँढने मे सफल नहीं हुए।

तभी कौवे ने कहा, "हे महाराज! आप मुझे अपना भोजन बनाकर अपनी भूख शांत करे।"
सियार बीच में बोला, "तुम बहुत ही छोटे हो और तुम्हारा माँस पर्याप्त नहीं है।"
फिर सियार ने शेर कि तरफ मुड़कर कहा, "कृपया मुझे भोजन के रूप में स्वीकार करे, आप के लिए जान देने में मुझे स्वर्ग मिलेगा।"

यह सुनते ही शेर ने मना कर दिया।
इसके पश्चात सभी अपने आपको भोजन के रूप में प्रस्तुत करने लगे, परंतु शेर नहीं माना।

ऊँठ यह सब देखते हुए सोच रहा था कि मुझे अपने आपको कुछ अलग तरह से पेश करना चाहिए। यह सोचकर वह बोला, "हे जानवरो तुम सब मांसाहारी हो और हमारे महाराज भी, इसलिए मैं खुद को भोजन के रूप मे प्रस्तुत करता हूँ और अपने स्वर्ग जाने का रास्ता बनाता हूँ। महाराज कृपया मुझे अपने भोजन के रूप में स्वीकार करे।"

इतना सुनते ही सभी जानवर खुशी से उछल पड़े। शेर ने तुरंत ऊँठ को मार गिराया और सभी जानवरो ने ऊँठ के माँस का लुप्त उठाया। बेचारा ऊँठ बाकी सभी जानवरों की चालाकी ना समझ पाया और अपनी जान गवा दी।

शिक्षा -


प्यारे दोस्तों! "दुष्ट लोग अक्सर दूसरों के भोलेपन का फायदा उठाते हैं, इसलिए उनकी मीठी-मीठी बातों में ना फसे और उनसे जितना हो सके दूर रहें।"

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Story By - Panchatantra Ki Kahiya
Post By - Khushi

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