Search Any Story

कबीर दास जी के दोहे! | Kabir Das Dohe #5

दोहा 1 - 
एकही बार परखिये ना वा बारम्बार।
बालू तो हू किरकिरी जो छानै सौ बार॥

कबीर कहना चाहते हैं - 
किसी व्यक्ति को बस एक बार में ही अच्छे से परख लो तो उसे बार-बार परखने की आवश्यकता न होगी। रेत को अगर सौ बार भी छाना जाए तो भी उसकी किरकिराहट दूर न होगी। जैसे कि दुर्जन को बार-बार भी परखो तब भी वह दुष्टता से वैसे ही भरे हुए मिलेंगे जैसे वह थे, किन्तु सही व्यक्ति की परख एक बार में ही हो जाती है।

कबीर दास जी के दोहे! | Kabir Das Dohe #5 | www.KWStoryTime.com

दोहा 2 - 
मूरख संग न कीजिए ,लोहा जल न तिराई।
कदली सीप भावनग मुख, एक बूँद तिहूँ भाई॥

कबीर कहना चाहते हैं - 
मूर्ख के साथ मत रहो! मूर्ख इंसान लोहे के सामान है जो जल में तैर नहीं पाता, डूब जाता है। संगति का प्रभाव इस तरीके का होता है जैसे कि आकाश से एक बूँद केले के पत्ते पर गिर कर कपूर, सीप के अन्दर गिर कर मोती और सांप के मुख में पड़कर विष बन जाती है।


दोहा 3 - 
कबीर चन्दन के निडै नींव भी चन्दन होइ।
बूडा बंस बड़ाइता यों जिनी बूड़े कोइ॥

कबीर कहना चाहते हैं - 
यदि चंदन के वृक्ष के पास नीम का वृक्ष हो तो वह भी कुछ सुवास ले लेता है, चंदन का कुछ प्रभाव पा लेता है। लेकिन बांस अपनी लम्बाई, बडेपन और घमंड के कारण डूब जाता है। बांस की तरह किसी को भी नहीं डूबना चाहिए। संगति का अच्छा प्रभाव ग्रहण करना चाहिए, अच्छी संगति में रहना चाहिए और घमंड नहीं करना चाहिए।


आशा करती हूं आपको कबीर के दोहे पसंद आए होंगे। अगर आप लोगों के पास भी उनके दोहे हैं या आप हमारी साइट पर किसी और के दोहे पढ़ना चाहते हैं, तो हमें नीचे कमेंट सेक्शन में लिखकर जरूर बताएं। हम जल्दी ही एक नई कहानी के साथ आपसे मिलते हैं, तब तक अपना ध्यान रखें और खुश हुई।

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.