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कबीर दास जी के दोहे! | Kabir Das Dohe #8

दोहा 1 - 
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।

कबीर कहना चाहते हैं - 
जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते।

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कबीर दास जी के दोहे! | Kabir Das Dohe #7

दोहा 1 - 
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।

कबीर कहना चाहते हैं - 
यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है।

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कबीर दास जी के दोहे! | Kabir Das Dohe #6

दोहा 1 - 
जो उग्या सो अन्तबै, फूल्या सो कुमलाहीं।
जो चिनिया सो ढही पड़े, जो आया सो जाहीं।।

कबीर कहना चाहते हैं - 
इस संसार का नियम यही है कि जो उदय हुआ है,वह अस्त होगा। जो विकसित हुआ है वह मुरझा जाएगा। जो चिना गया है वह गिर पड़ेगा और जो आया है वह जाएगा।

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कबीर दास जी के दोहे! | Kabir Das Dohe #5

दोहा 1 - 
एकही बार परखिये ना वा बारम्बार।
बालू तो हू किरकिरी जो छानै सौ बार॥

कबीर कहना चाहते हैं - 
किसी व्यक्ति को बस एक बार में ही अच्छे से परख लो तो उसे बार-बार परखने की आवश्यकता न होगी। रेत को अगर सौ बार भी छाना जाए तो भी उसकी किरकिराहट दूर न होगी। जैसे कि दुर्जन को बार-बार भी परखो तब भी वह दुष्टता से वैसे ही भरे हुए मिलेंगे जैसे वह थे, किन्तु सही व्यक्ति की परख एक बार में ही हो जाती है।

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कबीर दास जी के दोहे! | Kabir Das Dohe #4

दोहा 1 - 
कबीर यह तनु जात है सकै तो लेहू बहोरि।
नंगे हाथूं ते गए जिनके लाख करोडि॥

कबीर कहना चाहते हैं - 
यह शरीर नष्ट होने वाला है, तो हो सके तो अब भी संभल जाओ, इसे संभाल लो। जिनके पास लाखों करोड़ों की संपत्ति थी, वे भी यहाँ से खाली हाथ ही गए हैं। इसलिए जीते-जी धन संपत्ति जोड़ने में ही न लगे रहो, कुछ सार्थक भी कर लो। जीवन को कोई दिशा दे लो, कुछ भले का काम कर लो।

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कबीर दास जी के दोहे! | Kabir Das Dohe #3


दोहा 1 - 
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।।

कबीर कहना चाहते हैं - 
कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती। कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो,अपने मन को साफ करो ।

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कबीर दास जी के दोहे! | Kabir Das Dohe #2

दोहा 1 - 
संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत।
चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।।

कबीर कहना चाहते हैं - 
जो लोग सज्जन होते हैं उनसे चाहे कितने भी दुष्ट लोग मिलें, फिर भी सज्जन पुरुष अपने भले स्वभाव को नहीं छोड़ता। जैसे कि चंदन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर फिर भी वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता।

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कबीर दास जी के दोहे! | Kabir Das Dohe #1

दोहा 1 - 
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।

कबीर कहना चाहते हैं - 
जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला। जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है।

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