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कबीर दास जी के दोहे! | Kabir Das Dohe #8

दोहा 1 - 
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।

कबीर कहना चाहते हैं - 
जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते।

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दोहा 2 - 
जांमण मरण बिचारि करि कूड़े काम निबारि।
जिनि पंथूं तुझ चालणा सोई पंथ संवारि॥

कबीर कहना चाहते हैं - 
जन्म और मरण का विचार करके, बुरे कर्मों को छोड़ दो। जिस मार्ग पर तुझे चलना है उसी मार्ग का स्मरण कर, उसे ही याद रखकर, उसे ही सवारो और सुन्दर बनाओ।


दोहा 3 - 
मन जाणे सब बात जांणत ही औगुन करै।
काहे की कुसलात कर दीपक कूंवै पड़े॥

कबीर कहना चाहते हैं - 
मन सब बातों को जानता है, जानते हुआ भी अवगुणों में फंस जाता है। जो दीपक हाथ में पकडे हुए भी कुंए में गिर पड़े, उसमें कुशलता कैसी?


आशा करती हूं आपको कबीर के दोहे पसंद आए होंगे। अगर आप लोगों के पास भी उनके दोहे हैं या आप हमारी साइट पर किसी और के दोहे पढ़ना चाहते हैं, तो हमें नीचे कमेंट सेक्शन में लिखकर जरूर बताएं। हम जल्दी ही एक नई कहानी के साथ आपसे मिलते हैं, तब तक अपना ध्यान रखें और खुश हुई।

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