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कबीर दास जी के दोहे! | Kabir Das Dohe #4

दोहा 1 - 
कबीर यह तनु जात है सकै तो लेहू बहोरि।
नंगे हाथूं ते गए जिनके लाख करोडि॥

कबीर कहना चाहते हैं - 
यह शरीर नष्ट होने वाला है, तो हो सके तो अब भी संभल जाओ, इसे संभाल लो। जिनके पास लाखों करोड़ों की संपत्ति थी, वे भी यहाँ से खाली हाथ ही गए हैं। इसलिए जीते-जी धन संपत्ति जोड़ने में ही न लगे रहो, कुछ सार्थक भी कर लो। जीवन को कोई दिशा दे लो, कुछ भले का काम कर लो।

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दोहा 2 - 
जानि बूझि साँचहि तजै, करै झूठ सूं नेह।
ताकी संगति रामजी, सुपिनै ही जिनि देहु॥

कबीर कहना चाहते हैं - 
जो जानबूझ कर सत्य का साथ छोड़ देते हैं, झूठ से प्रेम करते हैं, हे भगवान् ऐसे लोगों की संगति हमें स्वप्न में भी न देना।


दोहा 3 - 
मनहिं मनोरथ छांडी दे, तेरा किया न होइ।
पाणी मैं घीव नीकसै, तो रूखा खाई न कोइ॥

कबीर कहना चाहते हैं - 
मन की इच्छा छोड़ दो, उन्हें तुम अपने बल पर पूरा नहीं कर सकते। यदि जल से घी निकल जाता, तो रूखी रोटी कोई भी नहीं खाता।


आशा करती हूं आपको कबीर के दोहे पसंद आए होंगे। अगर आप लोगों के पास भी उनके दोहे हैं या आप हमारी साइट पर किसी और के दोहे पढ़ना चाहते हैं, तो हमें नीचे कमेंट सेक्शन में लिखकर जरूर बताएं। हम जल्दी ही एक नई कहानी के साथ आपसे मिलते हैं, तब तक अपना ध्यान रखें और खुश हुई।

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