Search Any Story

कबीर दास जी के दोहे! | Kabir Das Dohe #2

दोहा 1 - 
संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत।
चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।।

कबीर कहना चाहते हैं - 
जो लोग सज्जन होते हैं उनसे चाहे कितने भी दुष्ट लोग मिलें, फिर भी सज्जन पुरुष अपने भले स्वभाव को नहीं छोड़ता। जैसे कि चंदन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर फिर भी वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता।

कबीर दास जी के दोहे! | Kabir Das Dohe #2 | www.KWStoryTime.com

दोहा 2 - 
ऐसा कोई ना मिले, हमको दे उपदेस।
भौ सागर में डूबता, कर गहि काढै केस।।

कबीर कहना चाहते हैं - 
कबीर दास जी संसारी जनों के लिए दुखित होते हुए कहते हैं कि इन्हें कोई ऐसा पथप्रदर्शक न मेल पाया जो उपदेश देता और संसार सागर में डूबते हुए इन प्राणियों को अपने हाथों से केश पकड़ कर निकाल लेता।


दोहा 3 - 
झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद।
खलक चबैना काल का, कुछ मुंह में कुछ गोद।।

कबीर कहना चाहते हैं - 
अरे इंसानो तुम क्यों झूठे सुख को सुख कहते हो और मन में प्रसन्न होते हो!! मृत्यु के काल के लिए यह सारा संसार तो बस भोजन के समान है, जिसमें कुछ उसने अपने मुंह में रखा है और कुछ गोद में खाने के लिए रखा है।


आशा करती हूं आपको कबीर के दोहे पसंद आए होंगे। अगर आप लोगों के पास भी उनके दोहे हैं या आप हमारी साइट पर किसी और के दोहे पढ़ना चाहते हैं, तो हमें नीचे कमेंट सेक्शन में लिखकर जरूर बताएं। हम जल्दी ही एक नई कहानी के साथ आपसे मिलते हैं, तब तक अपना ध्यान रखें और खुश हुई।

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.