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कबीर दास जी के दोहे! | Kabir Das Dohe #3


दोहा 1 - 
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।।

कबीर कहना चाहते हैं - 
कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है, पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती। कबीर की ऐसे व्यक्ति को सलाह है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलो,अपने मन को साफ करो ।

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दोहा 2 - 
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।

कबीर कहना चाहते हैं - 
सज्जन की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को समझना चाहिए। तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का ।


दोहा 3 - 
दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त।
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।।

कबीर कहना चाहते हैं - 
यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह दूसरों के दोष देख कर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत।


आशा करती हूं आपको कबीर के दोहे पसंद आए होंगे। अगर आप लोगों के पास भी उनके दोहे हैं या आप हमारी साइट पर किसी और के दोहे पढ़ना चाहते हैं, तो हमें नीचे कमेंट सेक्शन में लिखकर जरूर बताएं। हम जल्दी ही एक नई कहानी के साथ आपसे मिलते हैं, तब तक अपना ध्यान रखें और खुश हुई।

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