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कबीर दास जी के दोहे! | Kabir Das Dohe #7

दोहा 1 - 
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।

कबीर कहना चाहते हैं - 
यदि कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो उसे पता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए वह ह्रदय के तराजू में तोलकर ही उसे मुंह से बाहर आने देता है।

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दोहा 2 - 
ऊंचे कुल क्या जनमिया जे करनी ऊंच न होय।
सुबरन कलस सुरा भरा साधू निन्दै सोय॥

कबीर कहना चाहते हैं - 
यदि कार्य उच्च कोटि के नहीं हैं तो उच्च कुल में जन्म लेने से क्या लाभ? सोने का कलश यदि सुरा से भरा है तो साधु उसकी निंदा ही करेंगे।


दोहा 3 - 
साधु भूखा भाव का धन का भूखा नाहीं।
धन का भूखा जो फिरै सो तो साधु नाहीं मोबाइल॥

कबीर कहना चाहते हैं - 
साधु का मन भाव को जानता है, साधु भाव का भूखा होता है। वह धन का लोभी नहीं होता और जो धन का लोभी है, वह तो साधु नहीं हो सकता।


आशा करती हूं आपको कबीर के दोहे पसंद आए होंगे। अगर आप लोगों के पास भी उनके दोहे हैं या आप हमारी साइट पर किसी और के दोहे पढ़ना चाहते हैं, तो हमें नीचे कमेंट सेक्शन में लिखकर जरूर बताएं। हम जल्दी ही एक नई कहानी के साथ आपसे मिलते हैं, तब तक अपना ध्यान रखें और खुश हुई।

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