आज हम आप लोगों को तेनाली रमन की एक और प्रसिद्ध कहानी बताने जा रहे हैं। कहानी इस प्रकार है!
एक समय की बात है। तेनाली ने कहीं सुना था कि कोई दुष्ट आदमी साधु का भेष बनाकर लोगों को अपने जाल में फंसा लेता है। उन्हें प्रसाद में धतूरा खिला देता है। यह काम वह उनके शत्रुओं के कहने पर धन के लालच में करता है। धतूरा खाकर कोई तो मर जाता और कोई पागल हो जाता है। उन दिनों भी धतूरे के प्रभाव से एक व्यक्ति पागल होकर नगर कि सड़कों पर घूम रहा था। लेकिन धतूरा खिलाने वाले व्यक्ति के खिलाफ उसके पास कोई प्रमाण नहीं था। इसलिए वह खुले आम सीना तानकर चलता था। तेनालीराम ने सोचा कि ऐसे व्यक्ति को अवश्य दंड मिलना चाहिए।
एक दिन जब वह दुष्ट व्यक्ति शहर की सड़कों पर आवारागर्दी कर रहा था, तो तेनालीराम उसके पास गया और उसे बातों में उलझाए रखकर उस पागल के पास ले गया, जिसे धतूरा खिलाया गया था। वहाँ जाकर चुपके से तेनालीराम ने उसका हाथ पागल के सिर पर दे मारा। उस पागल ने आव देखा न ताव, उस आदमी के बाल पकड़कर उसका सिर पत्थर पर टकराना शुरू कर दिया। पागल तो वह था ही, उसने उसे इतना मारा कि वह पाखंडी साधु मर गया।
मामला राजा तक पहुँचा। राजा ने पागल को तो छोड़ दिया, लेकिन क्रोध में तेनालीराम को हाथी के पैर से कुचलवाने कि सजा दे दी। दो सिपाही तेनालीराम को शाम के समय एकांत स्थान पर ले गए और उसे गर्दन तक जमीन में गाड़ दिया। इसके बाद वे हाथी लेने चले गए। सिपाहियों ने सोचा अब यह बच भी कैसे सकता है।
कुछ देर बाद वहाँ से एक दुष्ट कुबड़ा ठग निकला। तेनालीराम ने सुन रखा था उस कुबड़े ठग के बारे मे, वह बहुत बड़ा ठग था और दूसरे लोगो को पागल बना कर पैसे ठगता था। उसने तेनालीराम से पूछा, "क्यों भाई, यह क्या तमाशा है? तुम इस तरह जमीन में क्यों गड़े हो?"
तेनालीराम ने कहा, "कभी मैं भी तुम्हारी तरह कुबड़ा था, पूरे दस साल मैं इस कष्ट से दुखी रहा। जो देखता वही मुझ पर हंसता। यहाँ तक कि मेरी पत्नी भी। अचानक एक दिन मुझे एक महात्मा मिल गए। वे मुझसे बोले, ‘इस पवित्र स्थान पर पूरा एक दिन एक आँख बंद किए और बिना एक शब्द भी बोला गर्दन तक खड़े रहोगे, तो तुम्हारा कष्ट दूर हो जाएगा। मिट्टी खोदकर मुझे बाहर निकालकर जरा देखो कि मेरा कूबड़ दूर हो गया कि नहीं।"
ठग ने मिट्टी खोदकर तेनाली को बाहर निकाला, तो बहुत हैरान हुआ। कूबड़ का कहीं नामोनिशान तक नहीं था।
वह तेनालीराम से बोला, "सालों हो गए इस कूबड़ के बोझ को पीठ पर लदे हुए। मैं क्या जानता था कि इसका इलाज इतना आसान है। मुझ पर इतनी कृपा करो, मुझे यहीं गाड़ दो। मैं तुम्हारा यह एहसान जिंजगी भर नहीं भूलूंगा और मेरी पत्नी को यह बात मत बताना कि कल तक मेरा कूबड़ ठीक हो जाएगा। मैं उसे हैरान करना चाहता हूँ।"
बहुत अच्छा! तेनालीराम ने ठग से कहा और उसे गर्दन तक गाड़ दिया। फिर उसके कपड़े बगल में दबाकर बोला, "अच्छा, तो मैं चलता हूँ। अपनी आंखें और मुंह बंद रखना चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए, नहीं तो सारी मेहनत बेकार हो जाएगी और यह कूबड़ बढ़कर दुगुना हो जाएगा।"
ठग बोला - "चिंता मत करो, मैंने कूबड़ के कारण बड़े दुख उठाए हैं। इसे दूर करने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ।"
तेनालीराम वहां से चलता बना।
कुछ देर बाद राजा के सिपाही एक हाथी लेकर वहां पहुँचे और ठग का सिर उसके पाँवों तले कुचलवा दिया। चूंकि शाम का समय था इसलिए सिपाहियों को पता नहीं चला कि यह कोई और व्यक्ति है। सिपाही तेनालीराम कि म्रत्यु का समाचार लेकर राजा के पास पहुँचा।
तब तक उनका क्रोध शांत हो गया था और अब वे दुखी हो रहे थे। क्योंकि उन्होंने तेनालीराम को म्रत्युदंड दिया था। तब तक उस पाखंडी साधु वह ठग के बारे में उन्हें काफी कुछ पता चल चुका था। वह सोच रहे थे, बेचारे तेनालीराम को बेकार ही अपनी जान गवानी पड़ी। उसने तो एक ऐसे अपराधी को दंड दिया, जिसे मेरे सिपाही भी नहीं पकड़ सके।
अभी राजा सोच में ही डूबे थे कि तेनालीराम दरबार में आ पहुँचा और बोला, "महाराज कि जय हो।" राजा सहित सभी आश्चर्य से उसके चेहरे कि ओर देख रहे थे। तेनालीराम ने राजा को सारी कहानी सुनाई। राजा ने उसे क्षमा कर दिया।
प्यारे दोस्तों! "जिस तरह राजा पूरी बात जाने बिना तेनाली को मृत्यु दंड की सजा दे देते हैं और बाद में पछताते हैं। ठीक उसी तरह हम लोग भी कई बार पूरी बात जाने बिना ही निर्णय ले लेते हैं और बाद में दुखी होते हैं। इसलिए कभी भी पूरी बात जाने बिना क्रोधित होकर कोई निर्णय ना लें, नहीं तो बाद में बस पछतावा ही होगा।"
आशा करते हैं कि आपको यह तेनालीराम की कहानी अच्छी लगी होगी। यदि आपके पास भी उनकी कुछ कहानियां हैं तो हमें जरुर लिख भेजिए। साथ ही हमें कमेंट सेक्शन में लिखकर जरूर बताइएगा कि आपको यह कहानी कैसी लगी और प्लीज हमारी इस पोस्ट को जरूर शेयर कीजिएगा। हम जल्द ही एक नई कहानी के साथ लौटेंगे तब तक आप अपना ध्यान रखना ना भूलें और खुश रहिए।
"धन्यवाद।"
Story By - Tenali Ram Tales
Post By - Khushi
एक समय की बात है। तेनाली ने कहीं सुना था कि कोई दुष्ट आदमी साधु का भेष बनाकर लोगों को अपने जाल में फंसा लेता है। उन्हें प्रसाद में धतूरा खिला देता है। यह काम वह उनके शत्रुओं के कहने पर धन के लालच में करता है। धतूरा खाकर कोई तो मर जाता और कोई पागल हो जाता है। उन दिनों भी धतूरे के प्रभाव से एक व्यक्ति पागल होकर नगर कि सड़कों पर घूम रहा था। लेकिन धतूरा खिलाने वाले व्यक्ति के खिलाफ उसके पास कोई प्रमाण नहीं था। इसलिए वह खुले आम सीना तानकर चलता था। तेनालीराम ने सोचा कि ऐसे व्यक्ति को अवश्य दंड मिलना चाहिए।
एक दिन जब वह दुष्ट व्यक्ति शहर की सड़कों पर आवारागर्दी कर रहा था, तो तेनालीराम उसके पास गया और उसे बातों में उलझाए रखकर उस पागल के पास ले गया, जिसे धतूरा खिलाया गया था। वहाँ जाकर चुपके से तेनालीराम ने उसका हाथ पागल के सिर पर दे मारा। उस पागल ने आव देखा न ताव, उस आदमी के बाल पकड़कर उसका सिर पत्थर पर टकराना शुरू कर दिया। पागल तो वह था ही, उसने उसे इतना मारा कि वह पाखंडी साधु मर गया।
मामला राजा तक पहुँचा। राजा ने पागल को तो छोड़ दिया, लेकिन क्रोध में तेनालीराम को हाथी के पैर से कुचलवाने कि सजा दे दी। दो सिपाही तेनालीराम को शाम के समय एकांत स्थान पर ले गए और उसे गर्दन तक जमीन में गाड़ दिया। इसके बाद वे हाथी लेने चले गए। सिपाहियों ने सोचा अब यह बच भी कैसे सकता है।
कुछ देर बाद वहाँ से एक दुष्ट कुबड़ा ठग निकला। तेनालीराम ने सुन रखा था उस कुबड़े ठग के बारे मे, वह बहुत बड़ा ठग था और दूसरे लोगो को पागल बना कर पैसे ठगता था। उसने तेनालीराम से पूछा, "क्यों भाई, यह क्या तमाशा है? तुम इस तरह जमीन में क्यों गड़े हो?"
तेनालीराम ने कहा, "कभी मैं भी तुम्हारी तरह कुबड़ा था, पूरे दस साल मैं इस कष्ट से दुखी रहा। जो देखता वही मुझ पर हंसता। यहाँ तक कि मेरी पत्नी भी। अचानक एक दिन मुझे एक महात्मा मिल गए। वे मुझसे बोले, ‘इस पवित्र स्थान पर पूरा एक दिन एक आँख बंद किए और बिना एक शब्द भी बोला गर्दन तक खड़े रहोगे, तो तुम्हारा कष्ट दूर हो जाएगा। मिट्टी खोदकर मुझे बाहर निकालकर जरा देखो कि मेरा कूबड़ दूर हो गया कि नहीं।"
ठग ने मिट्टी खोदकर तेनाली को बाहर निकाला, तो बहुत हैरान हुआ। कूबड़ का कहीं नामोनिशान तक नहीं था।
वह तेनालीराम से बोला, "सालों हो गए इस कूबड़ के बोझ को पीठ पर लदे हुए। मैं क्या जानता था कि इसका इलाज इतना आसान है। मुझ पर इतनी कृपा करो, मुझे यहीं गाड़ दो। मैं तुम्हारा यह एहसान जिंजगी भर नहीं भूलूंगा और मेरी पत्नी को यह बात मत बताना कि कल तक मेरा कूबड़ ठीक हो जाएगा। मैं उसे हैरान करना चाहता हूँ।"
बहुत अच्छा! तेनालीराम ने ठग से कहा और उसे गर्दन तक गाड़ दिया। फिर उसके कपड़े बगल में दबाकर बोला, "अच्छा, तो मैं चलता हूँ। अपनी आंखें और मुंह बंद रखना चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए, नहीं तो सारी मेहनत बेकार हो जाएगी और यह कूबड़ बढ़कर दुगुना हो जाएगा।"
ठग बोला - "चिंता मत करो, मैंने कूबड़ के कारण बड़े दुख उठाए हैं। इसे दूर करने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ।"
तेनालीराम वहां से चलता बना।
कुछ देर बाद राजा के सिपाही एक हाथी लेकर वहां पहुँचे और ठग का सिर उसके पाँवों तले कुचलवा दिया। चूंकि शाम का समय था इसलिए सिपाहियों को पता नहीं चला कि यह कोई और व्यक्ति है। सिपाही तेनालीराम कि म्रत्यु का समाचार लेकर राजा के पास पहुँचा।
तब तक उनका क्रोध शांत हो गया था और अब वे दुखी हो रहे थे। क्योंकि उन्होंने तेनालीराम को म्रत्युदंड दिया था। तब तक उस पाखंडी साधु वह ठग के बारे में उन्हें काफी कुछ पता चल चुका था। वह सोच रहे थे, बेचारे तेनालीराम को बेकार ही अपनी जान गवानी पड़ी। उसने तो एक ऐसे अपराधी को दंड दिया, जिसे मेरे सिपाही भी नहीं पकड़ सके।
अभी राजा सोच में ही डूबे थे कि तेनालीराम दरबार में आ पहुँचा और बोला, "महाराज कि जय हो।" राजा सहित सभी आश्चर्य से उसके चेहरे कि ओर देख रहे थे। तेनालीराम ने राजा को सारी कहानी सुनाई। राजा ने उसे क्षमा कर दिया।
शिक्षा -
प्यारे दोस्तों! "जिस तरह राजा पूरी बात जाने बिना तेनाली को मृत्यु दंड की सजा दे देते हैं और बाद में पछताते हैं। ठीक उसी तरह हम लोग भी कई बार पूरी बात जाने बिना ही निर्णय ले लेते हैं और बाद में दुखी होते हैं। इसलिए कभी भी पूरी बात जाने बिना क्रोधित होकर कोई निर्णय ना लें, नहीं तो बाद में बस पछतावा ही होगा।"
आशा करते हैं कि आपको यह तेनालीराम की कहानी अच्छी लगी होगी। यदि आपके पास भी उनकी कुछ कहानियां हैं तो हमें जरुर लिख भेजिए। साथ ही हमें कमेंट सेक्शन में लिखकर जरूर बताइएगा कि आपको यह कहानी कैसी लगी और प्लीज हमारी इस पोस्ट को जरूर शेयर कीजिएगा। हम जल्द ही एक नई कहानी के साथ लौटेंगे तब तक आप अपना ध्यान रखना ना भूलें और खुश रहिए।
"धन्यवाद।"
Story By - Tenali Ram Tales
Post By - Khushi
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