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तेनालीराम और सात जूते मारने वाली चाननपुर की चमेली | तेनालीराम

चाननपुर गाँव में चांदकुमारी नाम की एक रूपवती कन्या रहती थी। वह विवाह के योग्य हो गई थी लेकिन अपनी माँ के व्यवहार के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। उसकी माँ का नाम चमेली था जो अपने पति माधो को रोज़ सात जूते मारा करती थी। यह बात दूर-दूर तक के लोगों को पता थी इसलिए कोई भी चांदकुमारी को अपनी बहु नहीं बनाना चाहता था।

तेनालीराम और सात जूते मारने वाली चाननपुर की चमेली | तेनालीराम

दिन की दीपावली | तेनालीराम

दीपावली पास थी, राजा कृष्णदेव राय चाहते थे कि इस बार की दीपावली कुछ विशेष हो। इसके लिए चर्चा जोरों पर थी कि क्या किया जाए जो उत्सव यादगार बन जाए। राजपुरोहित ने कहा, "महाराजा, विशाल धार्मिक कथा का आयोजन किया जाए।" एक मंत्री ने कहा- "महाराजा, खेल उत्सव आयोजित करें।" किसी ने कहा- "जादूगरों का करतब रखा जाए।" 

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तेनालीराम के बाग की सिंचाई | तेनालीराम

एक बार विजयनगर में भीषण गर्मी के कारण सूखे की स्थिति पैदा हो गई। राज्य की नदियों-तालाबों का जलस्तर घट जाने के कारण पानी की विकट समस्या खड़ी हो गई। सूखे के कारण नगर के सभी बाग़-बगीचे भी सूखने लगे।

तेनालीराम ने अपने घर के पिछवाड़े एक बाग लगवाया था। वह बाग भी धीरे-धीरे सूखता जा रहा था। उस बाग के बीचो-बीच एक कुआं था, लेकिन उसका भी जलस्तर नीचे चला गया था। परिणामस्वरूप बाग की सिंचाई के लिए कूऐँ से पानी निकलना काफी कठिन था। यदि कुँए के पानी से बाग की सिंचाई कराने के लिए मजदूर भी लगाए जाते तो उसमे काफी धन खर्च होता।

तेनालीराम के बाग की सिंचाई | तेनालीराम

अरबी घोड़े | तेनालीराम

एक बार! महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में एक दिन एक अरब प्रदेश का व्यापारी घोड़े बेचने आता है। वह अपने घोड़ो का बखान कर के महाराज कृष्णदेव राय को सारे घोड़े खरीदने के लिए राजी कर लेता है, तथा अपने सारे घोड़े महाराज को बेच जाता है। अब महाराज के घुड़साल में इतने अधिक घोड़े हो जाते हैं कि उन्हें रखने की जगह नहीं बचती, इसलिए महाराज के आदेश पर बहुत से घोड़ों को विजयनगर के आम नागरिकों और राजदरबार के कुछ लोगों को तीन महीने तक देखभाल के लिए दे दिया जाता है। हर एक देखभाल करने वाले को घोड़ों के पालन खर्च और प्रशिक्षण के लिए प्रति माह एक सोने का सिक्का दिया जाता है।

अरबी घोड़े  | तेनालीराम

तेनालीराम की मनपसन्द मिठाई | तेनालीराम

एक बार महाराज, राजपुरोहित और तेनालीराम राज उद्यान में टहल रहे थे कि महाराज बोले, "ऐसी सर्दी में तो खूब खाओ और सेहत बनाओ। वैसे भी इस बार कड़के की ठण्ड पड़ रही हैं। ऐसे में तो मिठाई खाने का मज़ा ही कुछ और हैं।"

मटके में तेनालीराम | तेनालीराम

एक बार महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम से इतने नाराज़ हो गए कि उन्होंने उसे अपनी शक्ल न दिखाने का आदेश दे दिया और कहा, "अगर उसने उनके हुक्म की अवहेलना की तो उसे कोड़े लगायें जाएंगे।"
महाराज उस समय बहुत क्रोधित थे इसलिए तेनालीराम ने वहाँ से जाना ही उचित समझा।

दूध न पीने वाली बिल्ली | तेनालीराम

आज हम आप लोगों को तेनाली रमन की एक और प्रसिद्ध कहानी बताने जा रहे हैं। कहानी इस प्रकार है!

एक बार महाराज कृष्णदेव राय ने सुना कि उनके नगर में चूहों ने आतंक फैला रखा है। चूहों से छुटकारा पाने के लिए महाराज ने एक हजार बिल्लियां पालने का निर्णय लिया। महाराज का आदेश होते ही एक हजार बिल्लियां मंगवाई गयी। उन बिल्लियों को नगर के लोगों में बांटा जाना था। जिसे बिल्ली दी गयी उसे साथ में एक गाय भी दी गयी ताकि उसका दूध पिलाकर बिल्ली को पाला जा सके।

तेनालीराम और पागल व्यक्ति | तेनालीराम

आज हम आप लोगों को तेनाली रमन की एक और प्रसिद्ध कहानी बताने जा रहे हैं। कहानी इस प्रकार है!

एक समय की बात है। तेनाली ने कहीं सुना था कि कोई दुष्ट आदमी साधु का भेष बनाकर लोगों को अपने जाल में फंसा लेता है। उन्हें प्रसाद में धतूरा खिला देता है। यह काम वह उनके शत्रुओं के कहने पर धन के लालच में करता है। धतूरा खाकर कोई तो मर जाता और कोई पागल हो जाता है। उन दिनों भी धतूरे के प्रभाव से एक व्यक्ति पागल होकर नगर कि सड़कों पर घूम रहा था। लेकिन धतूरा खिलाने वाले व्यक्ति के खिलाफ उसके पास कोई प्रमाण नहीं था। इसलिए वह खुले आम सीना तानकर चलता था। तेनालीराम ने सोचा कि ऐसे व्यक्ति को अवश्य दंड मिलना चाहिए।

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रसगुल्ले की जड़ | तेनालीराम

मध्य पूर्वी देश से एक ईरानी शेख व्यापारी महाराज कृष्णदेव राय का अतिथि बन कर आता है। महाराज अपने अतिथि का सत्कार बड़े भव्य तरीके से करते हैं। उनके लिए वह अच्छे खाने और रहने का प्रबंध करते हैं, और साथ ही कई अन्य सुविधाएं भी प्रदान करते हैं।

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स्वर्ग कहाँ है | तेनालीराम

आज हम आपके साथ एक और मजेदार तेनालीराम की कहानी शेयर करने जा रहे हैं।

महाराज कृष्णदेव राय अपने बचपन में सुनी कथा अनुसार यह विश्वास करते थे कि संसार-ब्रह्मांड की सबसे उत्तम और मनमोहक जगह स्वर्ग है। एक दिन अचानक महाराज को स्वर्ग देखने की इच्छा उत्पन्न होती है, इसलिए दरबार में उपस्थित मंत्रियों से पूछते हैं, " बताइए स्वर्ग कहाँ है ?"

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तेनाली की मुनादी | तेनालीराम

एक बार राजा कृष्णदेव राय से पुरोहित ने कहा, "महाराज, हमें अपनी प्रजा के साथ सीधे जुड़ना चाहिए।" पुरोहित की बात सुनकर सभी दरबारी चौंक पड़े। वे पुरोहित की बात समझ न पाए। तब पुरोहित ने अपनी बात को समझाते हुए उन्हें बताया, "दरबार में जो भी चर्चा होती है, हर सप्ताह उस चर्चा की प्रमुख बातें जनता तक पहुंचाई जाएं। प्रजा भी उन बातों को जानें"'

मंत्री ने कहा, "महाराज, विचार तो वास्तव में बहुत उत्तम है। तेनालीराम जैसे अकलमंद और चतुर व्यक्ति ही इस कार्य को सुचारु रूप से कर सकते हैं। साथ ही तेनालीराम पर दरबार की विशेष जिम्मेदारी भी नहीं है।"


तेनालीराम की तरकीब | तेनालीराम

विजय नगर के राजा कृष्णदेवराय का एक दरबारी तेनालीराम से बहुत नाराज था। तेनालीराम ने उससे हंसी हंसी में कुछ ऐसी बात कह दी, जो उसे बुरी लग गई। दरबारी ने उसी दिन तेलानीराम से बदला लेने की ठान ली। दरबारी की तरह राजगुरु भी तेनालीराम हो पसंद नहीं करते थे।

सबसे बहुमूल्य उपहार | तेनालीराम

एक बार एक पड़ोसी राजा ने विजयनगर पर आक्रमण कर दिया। महाराज कृष्णदेव राय ने अपनी और अपने दरबारियों की सूझ-बूझ से युद्ध जीत लिया। और उन्होंने विजय हासिल करने पर उत्सव की घोषणा कर दी।

तेनालीराम किसी कारणवश उचित समय पर उत्सव मे नहीं आ पाए। उत्सव की समाप्ति पर महाराज ने कहा– "यह जीत मुझ अकेले की जीत नहीं है बल्कि आप सभी दरबारियों की जीत है। इस अवसर पर हमने सभी दरबारियों को उपहार देने की व्यवस्था की है। सभी सदस्य उस मंच पर रखे अपनी-अपनी पसंद के उपहार उठा लें।"

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गुलाब का चोर | तेनालीराम

यह किस्सा उस समय का है जब तेनालीराम राज्य में काम करता था। उसके राज्य में बहुत ही सुंदर सा बगीचा था।

तेनालीराम की पत्नी को अपने जुड़े में बड़े-बड़े गुलाब का बहुत शौक था। वह हर दिन अपने बेटे से चोरी छुपे बगीचे के गुलाब तोड़कर लाने को कहती थी। उनका बेटा हर दिल चोरी छुपे उस बगीचे में से एक गुलाब लेकर आ जाता था। तेनालीराम से जलने वालों को जब इस बात का पता चला, तो उन्होंने सोचा कि अच्छा मौका है। तेनालीराम को राजा की नजर से गिराने का।


तेनाली की नियुक्ति | तेनालीराम

बात उस समय की है जब तेनाली अपने गांव में ही रहता था और विजयनगर के कृष्णदेव राय की सेवा में नहीं था। उसने यह बात सुन रखी थी कि राजा कृष्णदेव गुणीजनों कि बहुत इज्जत करता है। उन्हें बड़े-बड़े कीमती पुरस्कार भी दिया जाता है पर राजदरबार में जाने का अवसर या कोई सिफारिश उसके पास नहीं थी।