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तेनाली की नियुक्ति | तेनालीराम

बात उस समय की है जब तेनाली अपने गांव में ही रहता था और विजयनगर के कृष्णदेव राय की सेवा में नहीं था। उसने यह बात सुन रखी थी कि राजा कृष्णदेव गुणीजनों कि बहुत इज्जत करता है। उन्हें बड़े-बड़े कीमती पुरस्कार भी दिया जाता है पर राजदरबार में जाने का अवसर या कोई सिफारिश उसके पास नहीं थी।


संयोगवश एक बार राजा कृष्णदेव राय के राजपुरोहित तेनाली के गाँव पहुँचे। जब तेनाली को पता चला कि ये राजपुरोहित हैं , तो उसे लगा कि वे राजदरबार में पहुँचने में उसकी मदद कर सकते हैं। यह सोचकर तेनाली ने राजपुरोहित जी की अपने घर में खूब सेवा की। अपनी क्षमता से अधिक उनको खान-पान कराया। उसकी सेवा से खुश होकर राजपुरोहित ने तेनाली को राजा से मिलने का आश्वासन दिया, मगर राजपुरोहित जी जानते थे कि तेनाली की बुध्दिमानी उनको राजा की नजरों में छोटा बना देगी। अत: उन्होंने लम्बा समय बीतने के बाद भी तेनाली को राजदरबार में नहीं बुलाया।

काफी इंतजार के बाद एक दिन तेनाली ने स्वयं ही राजा से मिलने की सोची। गाँव से सामान समेटकर वह अपनी माँ, पत्नी और पुत्र के साथ राजा कृष्णदेव की राजधानी विजयनगर पहुँचा। सबसे पहले उन्होंने नगर में राजपुरोहित जी का निवास स्थान का पता पूछा। सरलता से उनका पता मिल गया। वे राजपुरोहित जी के घर पहुँचे तो वहाँ भारी भीड़ थी। लोग लम्बी-लम्बी कतारों में पुरोहित जी से मिलने की प्रतीक्षा कर रहे थे। तेनाली तो खुश था कि पुरोहित जी देखते ही पहचान लेंगे और खूब आव-भगत करेंगे। यही सोचकर तेनाली पंक्ति तोड़कर एकदम राजपुरोहित के सामने पहुँच गया।

पुरोहित जी देखते ही उसे पहचान गए मगर अनभिज्ञ होते हुए तेनाली को अपमानित कर वहाँ से निकाल दिया। तेनाली अपने अपमान से बहुत दुखी हुआ। लेकिन उसने भी पुरोहित को देखने कि ठान ली। अगली प्रातः तेनाली सेवादारों की खुशामद कर राज-सभा में पहुँच ही गया। राजपुरोहित उसे देखते ही सन्न रह गए। उस समय राज-सभा में जीवन के वैराग्य, सच-झूठ पर पंडितो के विचार चल रहे थे। राजपुरोहित जी कह रहे थे- यह संसार झूठा है। यहाँ जो हो रहा है वह केवल स्वप्न है। यह केवल मन का भ्रम है कि कुछ हो रहा है, यदि हम वह नहीं भी करेंगे तो भी कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। सभी पंडित जी के विचारों से प्रभावित हो रहे थे।

इस बीच तेनाली बीच नें बोल पड़ा- पंडित जी क्या सच में ये सभी कार्य भ्रम हैं। "हाँ-हाँ, सब मिथ्या है, कुछ करो या नहीं, कुछ भेद नहीं हैं।" राजपुरोहित बड़े आत्मविश्वास से बोले। इतना सुनना था कि तेनाली फिर बोला, ठीक है पंडित जी, आज महाराजा के साथ दोपहर के भोजन के समय हम सभी पेट भरकर खाएंगे, आप दूर बैठकर ही सोच लेना कि आपने भरपेट खा लिया है। अब से आप प्रतिदिन ही ऐसा करना। "यह सुनते ही राजपुरोहित के चेहरे का रंग उड़ गया और राजा सहित सभी सभासद ठहाका लगाकर हँस पड़े।"

कृष्णदेव राय ने तेनाली का परिचय जाना तो उसने गाँव से नगर तक कि यात्रा का सारा व्रत्तांत सुना दिया। राजा ने राजपुरोहित की ओर देखते हुए- आपकी ईर्ष्या के कारण इस अनमोल रत्न को हम तक पहुँचने मे इतनी देर हो गई। अब से ये हमारे राज सलाहकार नियुक्त किए जाते हैं। तेनाली ने राजा का धन्यवाद किया।

शिक्षा - 

प्यारे दोस्तों! "यदि आप जीवन में कुछ पाना चाहते हैं तो उसके लिए स्वयं ही मेहनत करें। कभी भी अपने सपनों को पूरा करने के लिए गलत लोगों पर भरोसा ना करें।"

आशा करते हैं कि आपको यह तेनालीराम की कहानी अच्छी लगी होगी। यदि आपके पास भी उनकी कुछ कहानियां हैं तो हमें जरुर लिख भेजिए। साथ ही हमें कमेंट सेक्शन में लिखकर जरूर बताइएगा कि आपको यह कहानी कैसी लगी और प्लीज हमारी इस पोस्ट को जरूर शेयर कीजिएगा। हम जल्द ही एक नई कहानी के साथ लौटेंगे तब तक आप अपना ध्यान रखना ना भूलें और खुश रहिए।
"धन्यवाद।"

Story By - Tenali Ram Tales
Post By - Khushi

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