Search Any Story

गुलाब का चोर | तेनालीराम

यह किस्सा उस समय का है जब तेनालीराम राज्य में काम करता था। उसके राज्य में बहुत ही सुंदर सा बगीचा था।

तेनालीराम की पत्नी को अपने जुड़े में बड़े-बड़े गुलाब का बहुत शौक था। वह हर दिन अपने बेटे से चोरी छुपे बगीचे के गुलाब तोड़कर लाने को कहती थी। उनका बेटा हर दिल चोरी छुपे उस बगीचे में से एक गुलाब लेकर आ जाता था। तेनालीराम से जलने वालों को जब इस बात का पता चला, तो उन्होंने सोचा कि अच्छा मौका है। तेनालीराम को राजा की नजर से गिराने का।




उन सब लोगों ने तेनाली रमन के बेटे का रोज के फूल तोड़ने का समय नोट करा और निर्णय लिया कि अगले दिन इसी समय राज्य में राजा के सामने चोरी की यह बात बताएं।

अगले दिन जब तेनालीराम भी महल में मौजूद थे, तब सब ने महाराज से शिकायत कर दी और कहा कि महाराज! चोर इस समय आपके बगीचे में है यदि इज़ाज़त हो तो पकड़वा कर हाजिर करें। महाराज ने कहा- “ठीक है, वह चोर जो कोई भी है, उसे हमारे सामने हाजिर करो।”

सभी दरबारी कुछ सैनिकों के साथ बगीचे के द्वार पर आ गए और सिपाहियों को बगीचा घेर लेने का आदेश दिया। वे लोग तेनालीराम को भी अपने साथ ले आए थे और उन्हें पूरी बात बता दी, कि वह चोर और कोई नहीं बल्कि आपका बेटा है। कुछ दरबारी इस बात पर बड़ा रस ले रहे थे कि जब तेनालीराम का बेटा चोर हैसियत से दरबार में हाज़िर होगा तो तेनालीराम की क्या बात बनेगी।

एक दरबारी ने मजे लेते हुए कहा– “क्यों तेनालीराम! अब क्या कहते हो?”

“अरे भाई कहना क्या है?” एका-एक ही तेनालीराम ज़ोर से चिल्लाए- “मेरे बेटे के पास अपनी बात कहने के लिए जुबान है। वह स्वंय ही महाराज को बता देगा कि वह बगीचे में क्या करने आया है। वैसे मेरा ख्याल से "वह अपनी माँ की दावा के लिए पौधों कि जड़ें लेने आया होगा, न कि गुलाब के फूल को चोरी करने।”

तेनालीराम के बेटे ने बगीचे के अंदर से ये शब्द सुन लिया। दरअसल उसे सुनाने के लिए ही तेनालीराम ने इतनी ज़ोर से बोला था। वह फौरन समझ गया कि उसका पिता क्या कहना चाहता है, अत: उसने झोली में एकत्रित किए फूल फेंक दिये और कुछ पौधों की जड़ें उठाकर अपनी झोली मे रख लिया और बाहर आ गया। जैसे ही वह बाहर आया, वैसे ही दरबारियों के इशारे पर सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और ले जाकर दरबार में पेश किया।

दरबारियों ने कहा- “महाराज! यह है आपके बगीचे का चोर। तेनालीराम का पुत्र। यह देखिए, अभी भी इसकी झोली में गुलाब के फूल हैं।”

“गुलाब के फूल? कैसे गुलाब के फूल।” तेनालीराम के बेटे ने कहा और अपनी झोली में से सारी जड़ें महाराज के सामने फर्श पर डाल दी। उसने कहा कि महाराज! “मैं तो अपनी माँ की दावा के लिए पौधों की जड़ें लेने आया था।” यह देखकर महाराज ने दरबारियों को खूब फटकार लगाई। सभी दरबारी शर्म से सिर झुकाए खड़े सोचते रहे कि गुलाब के फूल जड़ कैसे बन गए?

इस तरह एक बार फिर तेनालीराम ने अपनी चतुराई से अपने आप को और अपने पुत्र को बचा लिया।

शिक्षा :- 

प्यारे दोस्तों! " कभी भी विपरीत परिस्थिति आए, तो तुरंत अपनी सूझबूझ से तरकीब लगाएं।"

आशा करते हैं कि आपको यह तेनालीराम की कहानी अच्छी लगी होगी। यदि आपके पास भी उनकी कुछ कहानियां हैं तो हमें जरुर लिख भेजिए। साथ ही हमें कमेंट सेक्शन में लिखकर जरूर बताइएगा क्या आपको यह कहानी कैसी लगी और प्लीज हमारी इस पोस्ट को जरूर शेयर कीजिएगा। हम जल्द ही एक नई कहानी के साथ लौटेंगे तब तक आप अपना ध्यान रखना ना भूलें और खुश रहिए।
"धन्यवाद।"

Story By :- Tenali Raman Tales
Post By :- Khushi

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.