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मूर्ख मित्र | पंचतंत्र

बहुत समय पहले की बात है, एक राज्य में एक राजा का राज था। एक दिन उसके दरबार में एक मदारी एक बंदर लेकर आया। उसने राजा और सभी दरबारियों को बंदर का करतब दिखाकर प्रसन्न कर दिया। बंदर मदारी का हर हुक्म मनाता था, जैसा मदारी बोलता, बंदर वैसा ही करता था।

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वह आज्ञाकारी बंदर राजा को भा गया। उसने अच्छी कीमत देकर मदारी से वह बंदर ख़रीद लिया। कुछ दिन राजा के साथ रहने के बाद, बंदर उससे अच्छी तरह हिल-मिल गया। वह राजा की हर बात मानता, वह राजा के कक्ष में ही रहता और उसकी सेवा करता था। राजा भी बंदर की स्वामिभक्ति देख बड़ा ख़ुश था।

वह अपनी सैनिकों और संतरियों से भी अधिक बंदर पर विश्वास करने लगा और उसे महत्व देने लगा। सैनिकों को यह बात बुरी लगती थी, किंतु वे राजा के समक्ष कुछ कह नहीं पाते थे।

एक दोपहर की बात है, राजा अपने शयनकक्ष में आराम कर रहे थे। बंदर पास ही खड़ा पंखे से हवा कर रहा था। कुछ देर में राजा गहरी नींद में सो गया, बंदर वहीं खड़े-खड़े पंखा हिलाता रहा।

तभी कहीं से एक मक्खी आई और राजा की छाती पर बैठ गई। बंदर की नज़र जब मक्खी पर पड़ी, तो उसने पंखा हिलाकर उसे हटाने का प्रयास किया। मक्खी उड़ गई, किंतु कुछ देर पश्चात पुनः वापस आकर राजा की छाती पर बैठ गई।

पुनः मक्खी को आया देख बंदर अत्यंत क्रोधित हो गया। उसने आव देखा न ताव और पास ही पड़ी राजा की तलवार उठाकर पूरी शक्ति से मक्खी पर प्रहार कर दिया। मक्खी तो उड़ गई, किंतु तलवार के जोरदार प्रहार से राजा की छाती दो टुकड़े हो गई और राजा के प्राण चलें गए। 

राजा की मृत्यु से पूरा नगर दुख में डूब गया। मंत्री और राजा के सलाहकारों का यही कहना था कि राजा खुद अपने मृत्यु के जिम्मेदार हैं। काश उन्होंने इस मूर्ख बंदर की जगह एक समझदार इंसान अपनी सेवा के लिए रखा होता, तो उन्हें अपनी जान नहीं गवानी पड़ती।

शिक्षा - 

प्यारे दोस्तों! "मूर्खों के साथ रहने से हमें अक्सर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इससे तो अच्छा है कि मूर्ख मित्र बनाने के जगह आप अकेले ही रहे। वह कहते हैं ना कि मूर्ख मित्र से तो बुद्धिमान शत्रु रखना ज्यादा समझदारी है।" 

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Story By - Panchatantra ki Kahaniya
Post By - Khushi

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