एक दिन इंटरवल के दौरान वो कक्षा में कुछ मित्रों को कहानी सुना रहे थे, सभी उनकी बातें सुनने में इतने मग्न थे की उन्हें पता ही नहीं चला की कब मास्टर जी कक्षा में आये और पढ़ाना शुरू कर दिया।
मास्टर जी ने अभी पढ़ाना शुरू ही किया था कि उन्हें कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी।
"कौन बात कर रहा है?" उन्होंने तेज आवाज़ में पूछा। सभी ने स्वामी जी और उनके साथ बैठे छात्रों कि तरफ इशारा कर दिया।
मास्टर जी तुरंत क्रोधित हो गए, उन्होंने तुरंत उन छात्रों को बुलाया और पाठ से संबधित प्रश्न पूछने लगे। जब कोई भी उत्तर न दे सका, तब अंत में मास्टर जी ने स्वामी जी से भी वही प्रश्न किया। पर स्वामी जी तो मानो सब कुछ पहले से ही जानते हों, उन्होंने आसानी से उत्तर दे दिया।
यह देख उन्हें यकीन हो गया कि स्वामी जी पाठ पर ध्यान दे रहे थे और बाकी छात्र बात-चीत में लगे हुए थे। फिर क्या था उन्होंने स्वामी जी को छोड़ सभी को बेंच पर खड़े होने की सजा दे दी। सभी छात्र एक-एक कर बेच पर खड़े होने लगे, स्वामी जी ने भी यही किया।
तब मास्टर जी बोले, "नरेन्द्र (स्वामी विवेकानंद) तुम बैठ जाओ।"
तब स्वामी जी ने उत्तर दिया, "नहीं सर! मुझे भी खड़ा होना होगा। क्योंकि वो मैं ही था जो इन छात्रों से बात कर रहा था।"
स्वामी जी ने सच बोलने की हिम्मत की और उस कारण उनके मास्टर जी उनसे और अधिक प्रसन्न हुए। उनके जीवन कि यह घटना हमें सिखाती है कि हमें हमेशा सच का दामन थामे रखना चाहिए।
शिक्षा -
प्यारे दोस्तों! "जिस तरह स्वामी जी ने सच का साथ दिया, उसी तरह अगर आप से भी कभी कोई गलती हो जाए तो झूठ ना बोले, बल्कि अपनी गलती मान ले और उससे सबक ले।"आशा करते हैं दोस्तों, के आपको यह स्वामी विवेकानंदा जी की कहानी पसंद आई होगी। यदि हां तो प्लीज हमें नीचे कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं, साथ ही हमारी इस पोस्ट को शेयर भी करना ना भूलें। अगर आप लोगों के पास भी स्वामी विवेकानंदा जी की कोई कहानी हो तो हमें जरूर भेजें। अपना ध्यान रखिए और हमेशा खुश रहिए, हम आपसे जल्द ही अगली कहानी में मिलते हैं।
आप सभी को नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं!
Story By - Swami Vivekananda Ji Life Events
Post By - Khushi
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