आज हम आपको भगवान गणेश जी की एक और प्रसिद्ध कहानी सुनाने जा रहे हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार धन के देवता कुबेर भगवान शिव और माता पार्वती के पास अपने यहां भोजन करने के लिए आमंत्रित करने कैलाश पर्वत पहुंचे। लेकिन शिवजी कुबेर की मंशा को समझ गए थे कि वे सिर्फ अपनी धन-संपत्ति का दिखावा करने के लिए उन्हें अपने महल में आमंत्रित कर रहे हैं। इसीलिए उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण कार्य में उलझे होने का कारण बताते हुए आने से मना कर दिया। अब जहां भगवान शंकर नहीं जाएंगे जाहिर सी बात है, वहां माता पार्वती का क्या काम तो माता पार्वती ने उन्हें ये बोलकर मना कर दिया कि अगर उनके पतिदेव नहीं जाएंगे तो वो भी नहीं जाएंगी। ऐसे में कुबेर दुखी हो गए और भगवान शिव से प्रार्थना करने लगे। तब शिव जी मुस्कुरा कर बोले कि आप मेरे पुत्र गणेश को ले जाएं।
तब कुबेर गणेश जी को अपने साथ भोज पर ले गए। वहां गणेश जी ने मन भर कर मिठाई और मोदक खाई। वापस आते समय कुबेर ने उन्हें मिठाई की थाल देकर विदा किया। जब गणेश भगवान कुबेर के महल से भोजन करके लौटे तो उन्होंने कुछ मिठाइयां अपने ज्येष्ठ भ्राता कार्तिकेय के लिए ले ली और अपने मूषक पर सवार होकर घर की ओर निकल पड़े।
रात का अंधेरा था, लेकिन चंद्रमा की रोशनी से कैलाश पर्वत चमक रहा था, तभी गणेशजी के मूषक ने मार्ग में एक सर्प देखा और भय से उछल पड़े। जिसके कारण वह संतुलन खो बैठे और नीचे गिर पड़े और उनकी सारी मिठाइयां भी धरती पर बिखर गईं। दूर आसमान से चंद्रमा उन्हें देख रहा था। जैसे ही गणेश जी आगे बढ़े और अपनी मिठाइयों को एकत्रित करने लगे तो उन्हें हंसने की आवाज़ सुनाई दी। उन्होंने नज़र दाए-बाएं घुमाई तो उन्हें कोई न दिखा। लेकिन जैसे ही उनकी आंखें आकाश पर पड़ीं तो उन्होंने चंद्रमा को हंसते हुए देखा।
यह देख गणेशजी बेहद शर्मिंदा हुए लेकिन दूसरे ही पल उन्हें यह एहसास हुआ कि उनकी मदद करने के स्थान पर चंद्रमा उनका मज़ाक उड़ा रहा है। वे पल भर में क्रोध से भर गए और चंद्रमा को चेतावनी देते हुए बोले, "घमंडी चंद्रमा! तुम इस प्रकार से मेरी विवशता का मजाक उड़ा रहे हो। यह तुम्हें शोभा नहीं देता। मेरी मदद करने की बजाय तुम मुझ पर हंस रहे हो, जाओ मैं तुम्हे श्राप देता हूं कि आज के बाद तुम इस विशाल गगन पर राज नहीं कर सकोगे। कोई भी तुम्हारी रोशनी को आज के बाद महसूस नहीं कर सकेगा। आज के बाद कोई भी तुम्हें देख नहीं सकेगा।"
जैसे ही उन्होंने चंद्रमा को श्राप दिया, वैसे ही चारों ओर अंधेरा फैल गया। अपनी भूल का अहसास होते ही चंद्रमा गणेश जी से माफ़ी मांगने लगे और उन से रहम की भीख मांगने लगे। चंद्रमा बोले, "कृपया आप मुझे माफ कर दीजिए और मुझे अपने इस श्राप से मुक्त कीजिए। यदि मैं अपनी रोशनी इस संसार पर नहीं फैला पाया तो मेरे होने न होने का अर्थ खत्म हो जाएगा।" चंद्रमा को यूं लाचार देखकर गणेशजी का गुस्सा कम होने लगा।
वे मुस्कुराए और उन्होंने चंद्रमा को माफ किया और कहा "मैं अब चाहकर भी अपना श्राप वापस नहीं ले सकता। परन्तु इस श्राप के असर को कम करने के लिए मैं तुम्हे एक वरदान ज़रूर दे सकता हूं।"
"गणेशजी ने चंद्रमा से कहा कि ऐसा अवश्य होगा कि तुम अपनी रोशनी खो दोगे लेकिन एक माह में ऐसा केवल एक ही बार होगा। इसके बाद तुम फिर से समय के साथ वापस बढ़ते जाओगे और फिर 15 दिनों के अंतराल में अपने सम्पूर्ण वेष में नज़र आओगे। "
कहा जाता है कि गणेशजी का ये श्राप आज भी कायम है। चंद्रमा आज भी धीरे-धीरे कम होता है और माह में एक दिन अपने पूर्ण आकार में आता है, जिसे पूर्णमासी कहा जाता है। इस तरीके से हर महा में पूर्णमासी और अमावस्या आती है।
शिक्षा -
प्यारे दोस्तों!! "यदि चंद्रमा ने घमंड नहीं किया होता और गणेश जी की सहायता की होती तो उन्हें श्राप नहीं मिलता। यदि हम किसी चीज में अच्छे हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि हम उस पर घमंड करने लगे और लोगों का मजाक बनाए।"
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"धन्यवाद।"
Story By - Ganeshji Ki Kahaniya (Mythological Story)
Post By - Khushi
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