अगर आपने भगवान विष्णु का चित्र देखा है तो आपने देखा होगा कि उनके एक हाथ की उंगली में हमेशा 'सुदर्शन चक्र' रहता है। कहा जाता है कि सुदर्शन चक्र उनका एक ऐसा शस्त्र है जिसे वह जब दानवों पर चलाते थे, तो वह दानवों को मार कर वापस भगवान विष्णु की उंगली में आ जाता था। आइए जानते हैं कि आखिर कैसे भगवान विष्णु उनका यह "सुदर्शन चक्र" मिला!
एक बार की बात है, राक्षसों का अत्याचार बहुत बढ़ गया था। कोई भी धार्मिक कार्य करना मुश्किल हो गया था। राक्षसों ने पूरी पृथ्वी पर आतंक मचा रखा था। राक्षस स्वर्ग पर भी अपना अधिकार जमाना चाहते थे। देवराज इंद्र उस समय स्वर्ग के राजा थे, वो स्वर्ग के सभी देवतागणों को लेकर भगवान विष्णु के पास गए। उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। देवता बोले "हे प्रभु! आप हमें राक्षसों के प्रकोप से मुक्ति दीजिए।"
भगवान विष्णु को पता था कि भगवान शिव ही इस समस्या का समाधान कर सकते हैं। विष्णु भगवान, महादेव के बड़े भक्त थे। विष्णु भगवान ने राक्षसों के विनाश के लिए शिव की तपस्या करने का निर्णय लिया। भगवान विष्णु हिमालय की बर्फीली पहाड़ियों पर शिव जी की तपस्या करने लगे।
विष्णु जी, भगवान शिव के एक हजार नामों का जाप करने लगे। हर एक नाम के साथ उन्होंने एक कमल का फूल चढ़ाने का संकल्प लिया। वहीं, भगवान शिव ने विष्णु जी की परीक्षा लेने की सोची।
विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव ने एक हजार कमल के फूलों में से एक फूल गायब कर दिया। विष्णु जी तपस्या में लीन थे, इसलिए उन्हें इस बात की खबर नहीं हुई। विष्णु जी, भगवान शिव का एक नाम पुकारते और कमल का एक फूल चढ़ाते जाते।
जब अंतिम नाम की बारी आई तो विष्णु जी ने देखा कि कमल तो बचा ही नहीं। अगर कमल नहीं चढ़ाते, तो तपस्या और संकल्प भंग हो जाता, इसलिए भगवान विष्णु ने कमल की जगह अपनी एक आंख चढ़ाने का सोचा, क्योंकि भगवान विष्णु को कमलनयन भी कहा जाता था, उनकी आंखें कमल की जैसे थी। जैसे ही विष्णु भगवान जी ने अपनी आंख निकालने लगे, तभी इतने में भगवान शिव उनके सामने प्रकट हो गए।
भगवान शिव, विष्णु जी के इस भक्ति भाव से बहुत प्रसन्न हो गए। भगवान शिव ने कहा, "हे विष्णु! तुम्हारे समान संसार में कोई दूसरा मेरा भक्त नहीं है। मांगो! क्या वरदान मांगते हो।"
तब विष्णु ने दैत्यों को समाप्त करने के लिए अजेय शस्त्र का वरदान मांगा। भगवान शिव ने विष्णु भगवान को "सुदर्शन चक्र" प्रदान किया और कहा कि तीनों लोकों में इसकी बराबरी करने वाला कोई और अस्त्र-शास्त्र नहीं होगा।
भगवान विष्णु ने उस चक्र से दैत्यों का संहार किया। इससे देवताओं को दैत्यों से मुक्ति मिली तथा सुदर्शन चक्र उनके स्वरूप के साथ सदैव के लिए जुड़ गया। इस तरह भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र मिला और शिव भगवान जी ने उन्हें दिया।
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"धन्यवाद।"
Story By - Vishnuji Ki Kahaniya (Mythological Story)
Post By - Khushi
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