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शिवा और उसके तीन प्रश्न | Inspirational Story

एक समय की बात है। एक गांव में एक आश्रम था, जहां गुरु जी अपने बहुत सारे शिष्यों के साथ रहते थे।

एक बार एक शिवा नामक शिष्य काफी परेशान था। वह मन ही मन कुछ सोच रहा था। गुरुजी की उस पर नजर पड़ी और उन्होंने कहा- "शिष्य क्या बात है, तुम इतने परेशान क्यों दिख रहे हो?"  इस पर शिवा शिष्य ने कहा कि गुरु जी मेरे मन में तीन सवाल है, जो मुझे बहुत ही परेशान कर रहें है।


गुरुजी ने कहा मुझे बताओ शायद मैं तुम्हें उसका कोई हल बता दूं। शिवा ने विनम्र होकर पूछा- " गुरु जी! मेरे तीन प्रश्न है।"

1. "कुछ लोग कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष है।"
2. "कुछ कहते हैं कि जीवन एक खेल है।"
3. "और कुछ कहते हैं कि जीवन एक उत्सव है।"

मैं यह जानना चाहता हूं कि इनमें से कौन सही है??

गुरु ने शांति से शिवा का प्रश्न सुना। फिर उन्होंने कहा चलो मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं।अगर तुम यह कहानी  ध्यानपूर्वक सुनोगे, तो तुम्हें खुद ही उत्तर समझ में आ जाएगा।

गुरु जी ने कहानी प्रारंभ की -

एक समय की बात है एक गुरुकुल में तीन शिष्य पढ़ते थे। जब उनकी पढ़ाई पूरी हुई तो वह अपने गुरु के पास गए और उन से विनती की क्या आप को गुरु दक्षिणा में क्या चाहिए ये कृपा करके बताएं।

गुरु जी मन ही मन मुस्कुराए और कहा- "मुझे तुम लोगों से गुरुदक्षिणा में एक थैला भर के सूखी पत्तियां चाहिए, क्या तुम लोग ला सकोगे?"

वह तीनों शिष्य मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए। उन्हें लगा कि यह तो बहुत ही आसान सा काम है वह तुरंत कर देंगे। और साथ ही गुरु जी की इच्छा भी पूरी कर देंगे। सूखी पत्तियां तो आसानी से जंगल में मिल जाती हैं। उन तीनों शिष्यों ने एकसाथ गुरुजी से कहा- "जी गुरु जी हम जल्द ही आपके लिए गुरुदक्षिणा लाते हैं।"

तीनों शिष्य जंगल की ओर निकल गए। जैसे ही वह जंगल में पहुंचे तो उनके आश्चर्य का ठिकाना ना था। जंगल में जरा से भी सूखे पत्ते नहीं थे। उन लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर कौन जंगल के सारे सूखे पत्ते ले गया?
तभी उनकी नजर सामने से आते हुए किसान पर गई। वह तीनों शिष्य किसान के पास पहुंचे और उससे एक थैला भर कर सूखे पत्ते देने का निवेदन करने लगे।

किसान ने शिष्य से कहा- " मुझे माफ कर दीजिए। मेरे पास जरा से भी सूखे पत्ते नहीं बचे। मैं उन पत्तियों का ईंधन के रूप में पहले ही उपयोग कर चुका हूं।"

तीनों शिष्यों ने निर्णय किया कि हम अगले गांव चलते हैं। शायद उस गांव में उनकी कोई सहायता कर पाए।

तीनों शिष्य उस गांव में पहुंच गए। वहां पर उन्हें एक व्यापारी मिला। तीनों शिष्यों ने उस व्यापारी से निवेदन किया कि वह उन्हें एक थैला भर कर सूखी पत्तियां दे दे।
इस पर व्यापारी बोला- " मुझे माफ कर दीजिए! मैं तो पहले से ही हूं सूखी पत्तियों के दोने बनाकर भेज चुका हूं ताकि मुझे कुछ पैसे मिल जाएं।" यदि आप लोग चाहे तो पास में ही एक बूढ़ी मां है जो सूखे पत्ते एकत्रित करती हैं। उनके घर जाकर देख लीजिए।

वह तीनों बूढ़ी मां के घर गए परंतु भाग्य ने उनका यहां भी साथ ना दिया। बूढ़ी मां ने उन सारी पत्तियों से औषधियां बना ली थी।

निराश होकर वह तीनों शिष्य फिर से गुरुकुल लौट गए। जब उनके गुरु जी ने अपने तीनों शिष्यों को देखा तो विनम्रता से पूछा- " क्या तुम लोग मेरी गुरु दक्षिणा ले आए हो?"

तीनों शिष्यों ने दुखी होकर नहीं में उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि "गुरुदेव! हम आपकी इच्छा पूरी नहीं कर पाये। हमें लगता था, किस सूखी पत्तियां तो हमेशा ही जंगल में पड़ी रहती हैं। परंतु हमें आज पता चला कि लोग उसका भी अलग-अलग तरीकों से इस्तेमाल करते हैं।"

गुरुजी मुस्कुराए और कहां- "तुम लोग निराश ना हो।"

यही ज्ञान कि सूखी पत्तियां भी व्यर्थ नहीं हुआ करतीं, बल्कि उनके भी अनेक उपयोग हुआ करते हैं; मुझे गुरुदक्षिणा के रूप में दे दो"
तीनों शिष्य यह सुनकर खुश हो गए और गुरु जी को प्रणाम करके अपने अपने घर चल दिए।

इसके साथ पहले गुरु गुरु जी ने अपनी कहानी खत्म की। शिवा जो गुरु जी का शिष्य था इस कहानी को ध्यान से सुन रहा था। बड़े ही उत्साह के साथ उसने कहा- "गुरु जी,अब मुझे अच्छी तरह से ज्ञात हो गया है, कि आप क्या कहना चाहते हैं।"

जिस तरह सूखे हुए पत्ते तक बेकार नहीं होते। उनका भी हम अलग-अलग काम में प्रयोग किया जा सकता है। तो फिर हम कैसे किसी वस्तु या व्यक्ति को महत्वहीन मानकर तिरस्कार कर सकते हैं। हर छोटी बड़ी चीज भले ही वह चींटी हो या हाथी, सुई हो या तलवार सबका अपना अपना महत्व होता है।

गुरूजी ने हंसकर कहा- "हाँ शिवा! मेरे कहने का यही अर्थ था।"

पहले प्रश्न का उत्तर यह है कि "जीवन में किसी से भी मिलो तो उसे पूरा सम्मान दो। हर इंसान अपने लिए संघर्ष कर रहा है।"
दूसरे प्रश्न का उत्तर है " यदि जीवन खेल है, तो हमें इससे बिना हीन भावना के खेलना चाहिए। सच का साथ देना चाहिए और आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।"
और तीसरे प्रश्न का उत्तर है " यदि जीवन में हम खुशी से रहें तो हर दिन ही उत्सव है।"

शिवा को अपने तीनों प्रश्नों का उत्तर मिल गया था। वह अब खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगा।

शिक्षा :- 

प्यारे मित्रों! "कोई भी चीज छोटी-बड़ी नहीं होती। हमें हर किसी का सम्मान करना चाहिए, अपनी बातों से किसी का भी दिल नहीं दुखाना चाहिए, जिंदगी में आगे बढ़ने की कोशिश करते रहना चाहिए और जिंदगी को खुलकर जीना चाहिए।"

दोस्तों! हमने कोशिश की है कि यह कहानी हम आसान शब्दों में आपको समझा सके। अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो प्लीज हमें कमेंट सेक्शन में लिखकर बताएं और साथ ही इसे शेयर भी कीजिएगा। हम जल्द ही आपसे एक नई कहानी के साथ मिलेंगे। आपके प्यार और योगदान के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
अपना ध्यान रखिए और खुश रहिए।

Post By :- Khushi

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