रक्षाबंधन की शुरुआत कब से हुई इसकी कोई निश्चित जानकारी तो नहीं है परंतु पुराणों में ऐसी बहुत सारी कहानियां है जो रक्षाबंधन के पर्व को बताती है। आज हम आपसे ऐसी ही कुछ पौराणिक कहानियां शेयर करेंगे।
रक्षाबंधन से संबंधित पौराणिक कहानियां
श्री लक्ष्मी जी और दानवराज बलि
101 यज्ञ पूरे करने के बाद दानव राजा बलि के मन में स्वर्ग जाने की इच्छा उठी, तो राजा इंद्र का सिंहासन डोलने लगा। घबराकर इंद्र और अन्य देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। राजा बलि को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने ब्राह्मण का वेष धारण किया और राजा बलि से तीन पग भूमि भिक्षा में मांग ली।
बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। इसके बाद वामन रूप में भगवान ने एक पग में स्वर्ग और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। तीसरा पैर कहां रखें? बलि के सामने संकट खड़ा हो गया, लेकिन वचन से कैसे निपट सकते थे।
आखिरकार उन्होंने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया और कहा, तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने वैसा ही किया। पैर रखते ही राजा बलि रसातल लोक में पहुंच गए।
जब बलि रसातल में चले गए तब उन्होंने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया और भगवान विष्णु को उनका द्वारपाल बनना पड़ा। भगवान के रसातल निवास से लक्ष्मी जी परेशान हो गईं। उन्होंने सोचा कि यदि स्वामी रसातल में द्वारपाल बन कर निवास करेंगे तो बैकुंठ लोक का क्या होगा?
इस समस्या के समाधान के लिए श्री लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय सुझाया। लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उन्हें राखी बांधकर अपना भाई बनाया और उपहार स्वरुप अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। इसलिए रक्षा-बंधन मनाया जाने लगा।
यह रक्षाबंधन की सबसे पौराणिक कथा मानी जाती है और तभी से रक्षाबंधन मनाया जा रहा है।
देवराज इंद्र और इंद्राणी
भविष्य पुराण के अनुसार एक बार देवताओं और दानवों में कई दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ जिसमे की देवताओं की हार होने लगी। यह सब देखकर देवराज इंद्र बड़े निराश होने लगे, तब इंद्र की पत्नी हिना रानी ने विधान पूर्वक एक रक्षासूत्र तैयार किया और श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को ब्राह्मणो द्वारा देवराज इंद्र के हाथ पर बंधवाया जिसके प्रभाव से इंद्र युद्ध में विजयी हुए। तभी से यह "रक्षा बंधन" पर्व ब्राह्मणों के माध्यम से मनाया जाने लगा। आज भी भारत के कई हिस्सों में रक्षा बंधन के पर्व पर ब्राह्मणों से राक्षसूत्र बंधवाने का रिवाज़ है। आज भी यह कथा सबसे प्राचीन कथा मानी जाती है।
श्रीकृष्ण और द्रौपदी की कहानी
महाभारत के समय की बात है। कहते हैं कि महाभारत में श्री कृष्ण ने शिशुपाल का वध अपने चक्र से किया था। शिशुपाल का सिर काटने के बाद जब चक्र वापस श्री कृष्ण जी के पास आया तो उस समय श्री कृष्ण जी की उंगली कट गई। भगवान कृष्ण की उंगली से रक्त बहने लगा। यह देखकर द्रौपदी ने अपनी साडी़ का किनारा फाड़ कर श्री कृष्ण जी की उंगली में बांधा था। इस कारण श्री कृष्ण जी ने द्रौपदी को वचन दिया कि वह उनकी भाई बनकर रक्षा करेंगे। जब दुशासन ने द्रौपदी जी को परेशान किया तब कृष्ण जी ने भाई के समान अपनी बहन की रक्षा की और उनकी लाज रखी। तब से "रक्षाबंधन" का पर्व मनाने का चलन चला आ रहा है।
हुमायूं और रानी कर्णावती
बात उस समय की है जब मध्यकालीन युग में राजपूत व मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णावती चितौड़ के राजा की विधवा थीं। रानी कर्णावती को जब बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्वसूचना मिली तो वह घबरा गई। रानी कर्णावती, बहादुरशाह से युद्ध कर पाने में असमर्थ थी। अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूं को राखी भेजी थी। हुमायूं ने राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुंच कर बहादुरशाह के विरुद्घ मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्णावती और उसके राज्य की रक्षा की। दरअसल, हुमायूं उस समय बंगाल पर चढ़ाई करने जा रहा था लेकिन रानी के और मेवार की रक्षा के लिए अपने अभियान को बीच में ही छोड़ दिया। इस तरह हुमायूं ने रानी कर्णावती कि भाई बनकर रक्षा की और उनकी राखी की लाज रखें।
आशा करते हैं कि आपको यह सारी रक्षाबंधन की कहानियां पसंद आई होगी। अगर आपके पास भी कोई रक्षाबंधन संबंधित कहानियां हैं, तो हमें जरूर लिखकर भेजें। हम प्रार्थना करते हैं कि सभी भाई बहन खुश रहें और आप सभी रक्षाबंधन अच्छे से मनाएं। आप सभी लोगों को रक्षाबंधन की बहुत-बहुत बधाई। जल्दी हम एक नई कहानी के साथ आपसे मिलेंगे।
"धन्यवाद।"
Story By :- Legendary Stories
Post By :- Khushi
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