पर फिर भी एक गरीब ब्राह्मण अपनी बेटी के विवाह के लिए धन जोड़ने की खातिर तैयार हो गया। जैसे-तैसे कर के उसने कांपते, ठिठुरते रात निकाल ली, और सुबह बादशाह अकबर से अपना अर्जित इनाम मांगा।
अकबर ने पूछा कि तुम इतनी सर्द रात में पानी के अंदर कैसे खड़े रह पाये।
ब्राह्मण ने कहा कि मैं दूर आप के किले के झरोखों पर जल रहे दिये का चिंतन कर कर के खड़ा रहा, और यह सोचता रहा कि वह दिया मेरे पास ही है। इस तरह रात बीत गयी।
अकबर ने यह सुन कर तुरंत इनाम देने से माना कर दिया, और यह तर्क दिया कि उसी दिये की गर्मी से तुम पानी में रात भर खड़े रह सके। इसलिए तुम इनाम के हक़दार नहीं। ब्राह्मण रोता हुआ उदास हो कर चला गया।
बीरबल जानता था कि ब्राह्मण के साथ यह अन्याय हुआ है। उसने ब्राह्मण का हक़ दिलवाने का निश्चय कर लिया।
अगले दिन अकबर और बीरबल वन में शिकार खेलने चले गए। दोपहर में बीरबल ने तिपाई लगायी और आग जला कर खिचड़ी पकाने लगा। अकबर सामने बैठे थे। बीरबल ने जानबूझ कर खिचड़ी का पात्र आग से काफी ऊंचा लटकाया। अकबर देख कर बोल पड़े कि अरे मूर्ख इतनी ऊपर बंधी हांडी को तपन कैसे मिलेगी हांडी को नीचे बांधो, वरना खिचड़ी नहीं पकेगी।
बीरबल ने कहा पकेगी… पकेगी… खिचड़ी पकेगी। आप धैर्य रखें। इस तरह दो पहर से शाम हो गयी, और अकबर लाल पीले हो गए और गुस्से में बोले,
बीरबल तुम क्या मेरा मज़ाक उड़ा रहा हो? तुम्हें समझ नहीं आता? इतनी दूर तक आंच नहीं पहुंचेगी, हांडी नीचे करो।
तब बीरबल ने कहा कि अगर इतनी सी दूरी से अग्नि खिचड़ी नहीं पका सकती तो उस ब्राह्मण को आप के किले के झरोखे पर जल रहे दिये से ऊर्जा केसे प्राप्त हुई होगी?
यह सुनकर अकबर फौरन अपनी गलती समझ गाए और अगले दिन ही गरीब ब्राह्मण को बुला कर उसे 1000 मोहरे दे देते हैं और साथ ही भरे दरबार में अपनी गलती समझाने के लिए बीरबल के इस तरीके की प्रशंसा करते हैं।
शिक्षा -
प्यारे दोस्तों! "बिना सोचे समझे और पूरी बात जाने कभी किसी के साथ अन्याय नहीं करना चाहिए और ना ही किसी निर्णय पर पहुंचना चाहिए।"
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Story By - Akbar Birbal Stories
Post By - Khushi
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