एक दिन, एक अजनबी व्यक्ति अकबर के दरबार में पहुंचा और बादशाह को झुककर सलाम किया। उसने कहा, "जहांपनाह, मैं कई भाषाओं में पारंगत हूं और आपके दरबार में मंत्री के रूप में सेवा करने का इच्छुक हूं।"
अकबर ने उसकी बात सुनकर उसे परखने का विचार किया। उन्होंने अपने मंत्रियों से कहा कि वे अजनबी से अलग-अलग भाषाओं में बात करें। दरबार में मौजूद मंत्रियों ने बारी-बारी से विभिन्न भाषाओं में उससे संवाद किया। हर बार अजनबी ने उसी भाषा में उत्तर देकर सबको चकित कर दिया। दरबारी उसकी भाषाओं की जानकारी से प्रभावित हो गए और उसकी प्रशंसा करने लगे।