जब महेश दास बड़े हुए तब उन्होंने बादशाह अकबर के यहां काम करने की इच्छा अपनी मां से जाहिर की। उन्होंने मां से कहा कि बादशाह ने मुझे अंगूठी दी थी, मैं वहां अंगूठी लेकर उनसे मिलने जाऊंगा और अपने लिए नौकरी की बात करूंगा।
उन्होंने अपना सामान बांधा, अंगूठी ली, अपनी मां से आशीर्वाद लिया और बादशाह के राज्य के लिए रवाना हो गए।