रामू एक बहुत ही मेहनती व्यापारी था। वह रंग बिरंगी खूबसूरत टोपी बनाया करता था और उन्हें अलग-अलग गांव मैं जाकर बेचा करता था।
अप्रैल की बात थी, गर्मी का मौसम था। रामू अपने टोपी से भरी पोटली लेकर एक गांव से दूसरे गांव की तरफ जा रहा था। जंगल में चलते-चलते वह काफी थक चुका था, इसलिए उसने सोचा कि क्यों ना मैं कुछ देर जंगल में ही एक पेड़ के नीचे आराम कर लो। यह सोचकर वह एक बड़े से पेड़ के छांव में जाकर थोड़ी देर के लिए सो गया। उसने अपने टोपियों की गठरी एक ओर रख दी और लेट गया। थोड़ी देर में ही उसे गहरी नींद आ गई।
उस बड़े से वृक्ष के ऊपर काफी बंदर रहते थे। उन्होंने देखा कि रामू आराम से सो रहा है और उसके पास एक पोटली है। सभी बंदर तुरंत उस पोटली के पास गए और देखा कि उसके अंदर काफी रंग बिरंगी टोपी रखी हुई है। बंदर स्वाभाव में काफी नकलची होते हैं, उन्होंने देखा कि रामू ने भी एक लाल रंग की टोपी अपने सिर पर पहनी हुई है। फिर क्या था सभी बंदरों ने रामू की पोटली से एक-एक टोपी निकाल कर पहन ली।
सभी रंग बिरंगी टोपी बंदरों के सिर पर अलग से दिख रही थी, उसे देखकर बंदरों को काफी मजा आ रहा था। वह पेड़ के ऊपर झूमने लगे कूदने लगे और जोर-जोर से हंसने लगे। इन सब आवाजों के कारण रामू की नींद खुल गई।
रामू ने उठकर अपनी पोटली देखी तो वह हैरान रह गया, आखिर सारी टोपिया कहां गई? उसकी नजर बंदरों पर पड़ी, जिन्होंने उसकी सारी रंग बिरंगी टोपी पहनी हुई थी। यह देखकर वह काफी दुखी हो गया और घबरा गया कि आखिर अब वह क्या करें। अगर वह टोपी नहीं बेचेगा तो उसके पास रुपए कैसे आएंगे और वह घर खर्च कैसे चलाएगा।
उसने काफी देर सोचा कि आखिर वह क्या करें, एक तो वह अकेला है और इतने सारे बंदरों का मुकाबला कैसे करें? तभी रामू को एक तरकीब सोची। उसे याद आया कि बंदर नकलची होते हैं। क्यों ना कुछ ऐसा किया जाए कि बंदर खुद अपने अपने टोपी फेंक दे।
रामू ने पहले अपने कान पकड़े, यह देख सारे बंदरों ने भी अपने कान पकड़ लिए। रामू ने अपने पेट पर हाथ फेरा, यह देख सारे बंदरों ने भी अपने पेट पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। अंत में रामू ने अपने टोपी निकाल कर दूर फेंक दी, यह देख सारे बंदरों ने भी अपनी टोपी निकाल कर दूर फेंक दी। रामू ने वहां से दूर भागने की नकल की, यह देख बंदर भी उछल-उछल कर दूर पेड़ों की और भाग गए और वहां से चले गए।
बस क्या था रामू ने तुरंत अपनी सारी टोपियां बटोरी, उन्हें पोटली में अच्छे से रखा और वहां से दूसरे गांव की ओर निकल पड़ा। रामू अब बेहद खुश था, उसने अकेले ने ही अपने दिमाग से सारे बंदरों से अपनी टोपी हासिल कर ली थी।
प्यारे दोस्तों! "जिस तरह रामू ने अपना दिमाग लगाकर यह पहचान लिया कि वह बंदरों से कैसे अपने टोपी हासिल कर सकता है, ठीक उसी तरह हम भी अपनी सूझबूझ से घबराए बिना दिमाग लगाकर बड़ी से बड़ी विपत्तियों से बाहर आ सकते हैं।"
यदि आपको यह कहानी पसंद आई हो तो हमें कमेंट बॉक्स में लिख कर जरूर बताएं और अगर आप लोगों के पास भी अकबर-बीरबल की मजेदार कहानियां हो तो हमें लिखकर भेजना ना भूले। दोस्तों! हमारी वेबसाइट को आपके सहयोग और प्यार की जरूरत है, इसलिए हमारी पोस्ट को शेयर करना ना भूले। आप सभी के सहयोग का बहुत-बहुत धन्यवाद।
हम जल्द ही आपसे अगली कहानी के साथ मिलेंगे। तब तक अपना ध्यान रखिए और खुश रहें।
Inspired By - Internet
Story By - Khushi
Post By - Khushi
अप्रैल की बात थी, गर्मी का मौसम था। रामू अपने टोपी से भरी पोटली लेकर एक गांव से दूसरे गांव की तरफ जा रहा था। जंगल में चलते-चलते वह काफी थक चुका था, इसलिए उसने सोचा कि क्यों ना मैं कुछ देर जंगल में ही एक पेड़ के नीचे आराम कर लो। यह सोचकर वह एक बड़े से पेड़ के छांव में जाकर थोड़ी देर के लिए सो गया। उसने अपने टोपियों की गठरी एक ओर रख दी और लेट गया। थोड़ी देर में ही उसे गहरी नींद आ गई।
उस बड़े से वृक्ष के ऊपर काफी बंदर रहते थे। उन्होंने देखा कि रामू आराम से सो रहा है और उसके पास एक पोटली है। सभी बंदर तुरंत उस पोटली के पास गए और देखा कि उसके अंदर काफी रंग बिरंगी टोपी रखी हुई है। बंदर स्वाभाव में काफी नकलची होते हैं, उन्होंने देखा कि रामू ने भी एक लाल रंग की टोपी अपने सिर पर पहनी हुई है। फिर क्या था सभी बंदरों ने रामू की पोटली से एक-एक टोपी निकाल कर पहन ली।
सभी रंग बिरंगी टोपी बंदरों के सिर पर अलग से दिख रही थी, उसे देखकर बंदरों को काफी मजा आ रहा था। वह पेड़ के ऊपर झूमने लगे कूदने लगे और जोर-जोर से हंसने लगे। इन सब आवाजों के कारण रामू की नींद खुल गई।
रामू ने उठकर अपनी पोटली देखी तो वह हैरान रह गया, आखिर सारी टोपिया कहां गई? उसकी नजर बंदरों पर पड़ी, जिन्होंने उसकी सारी रंग बिरंगी टोपी पहनी हुई थी। यह देखकर वह काफी दुखी हो गया और घबरा गया कि आखिर अब वह क्या करें। अगर वह टोपी नहीं बेचेगा तो उसके पास रुपए कैसे आएंगे और वह घर खर्च कैसे चलाएगा।
उसने काफी देर सोचा कि आखिर वह क्या करें, एक तो वह अकेला है और इतने सारे बंदरों का मुकाबला कैसे करें? तभी रामू को एक तरकीब सोची। उसे याद आया कि बंदर नकलची होते हैं। क्यों ना कुछ ऐसा किया जाए कि बंदर खुद अपने अपने टोपी फेंक दे।
रामू ने पहले अपने कान पकड़े, यह देख सारे बंदरों ने भी अपने कान पकड़ लिए। रामू ने अपने पेट पर हाथ फेरा, यह देख सारे बंदरों ने भी अपने पेट पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। अंत में रामू ने अपने टोपी निकाल कर दूर फेंक दी, यह देख सारे बंदरों ने भी अपनी टोपी निकाल कर दूर फेंक दी। रामू ने वहां से दूर भागने की नकल की, यह देख बंदर भी उछल-उछल कर दूर पेड़ों की और भाग गए और वहां से चले गए।
बस क्या था रामू ने तुरंत अपनी सारी टोपियां बटोरी, उन्हें पोटली में अच्छे से रखा और वहां से दूसरे गांव की ओर निकल पड़ा। रामू अब बेहद खुश था, उसने अकेले ने ही अपने दिमाग से सारे बंदरों से अपनी टोपी हासिल कर ली थी।
शिक्षा -
प्यारे दोस्तों! "जिस तरह रामू ने अपना दिमाग लगाकर यह पहचान लिया कि वह बंदरों से कैसे अपने टोपी हासिल कर सकता है, ठीक उसी तरह हम भी अपनी सूझबूझ से घबराए बिना दिमाग लगाकर बड़ी से बड़ी विपत्तियों से बाहर आ सकते हैं।"
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