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शेर बनाने का अपराध किसने किया? | 22वीं कहानी | विक्रम-बैताल

कुसुमपुर नगर में एक राजा राज्य करता था। उसके नगर में एक ब्राह्मण था, जिसके चार बेटे थे। लड़के जब बड़े हुए तब उनके पिताजी की मृत्यु हो गई और उनकी मां उनके पिताजी के साथ सती हो गयी। उनके रिश्तेदारों ने उनका धन छीन लिया। वे चारों भाई नाना के यहाँ चले गये। लेकिन कुछ दिन बाद वहाँ भी उनके साथ बुरा व्यवहार होने लगा। तब सबने मिलकर सोचा कि कोई विद्या सीखनी चाहिए। यह सोच कर चारों चार दिशाओं में चल दिये।

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कुछ समय बाद वे विद्या सीखकर मिले। उन्होंने एक दूसरे को बताया कि उन लोगों ने क्या विद्या सीखी है।
एक ने कहा, 'मैंने ऐसी विद्या सीखी है कि मैं मरे हुए प्राणी की हड्डियों पर मांस चढ़ा सकता हूँ।'
दूसरे ने कहा, 'मैं उसकी खाल और बाल पैदा कर सकता हूँ।'
तीसरे ने कहा, 'मैं उसके सारे अंग बना सकता हूँ।'
चौथा बोला, 'मैं उसमें जान डाल सकता हूँ।'

फिर वे अपनी विद्या की परीक्षा लेने जंगल में गये। वहाँ उन्हें एक मरे शेर की हड्डियाँ मिलीं। उन्होंने उसे बिना पहचाने ही उठा लिया। एक ने माँस डाला, दूसरे ने खाल और बाल पैदा किये, तीसरे ने सारे अंग बनाये और चौथे ने उसमें प्राण डाल दिये। शेर जीवित हो उठा और सबको खा गया।

यह कथा सुनाकर बेताल बोला, "हे राजा, बताओ कि उन चारों में शेर बनाने का अपराध किसने किया?"

राजा ने कहा, "चौथे भाई ने जिसने शेर में प्राण डाल दिए, क्योंकि बाकी तीन को यह पता ही नहीं था कि वे शेर बना रहे हैं। इसलिए उनका कोई दोष नहीं है।"

बेताल बोला, "वाह राजा! तुम ने एकदम सही जवाब दिया है, पर तुम भूल गए मैंने तुमसे कहा था कि अगर तुम कुछ बोले तो मैं चला जाऊंगा।"
इतना कहते ही बेताल फिर से पेड़ पर जा लटका और राजा को वहाँ जाकर उसे लाना पड़ा। बेताल ने चलते-चलते फिर से एक बार नयी कहानी सुनायी।

शिक्षा -

प्यारे दोस्तों! "बिना जाने पहचाने और देखते परखे कोई काम नहीं करना चाहिए। जिस तरह वह चारों भाई देखते नहीं है कि वह क्या बना रहे हैं और अंत में उनका जीवन समाप्त हो जाता है, वैसे ही बिना देखे समझे कुछ नहीं करना चाहती, नहीं तो नतीजा भयानक हो सकता है।"

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अगली कहानी के साथ हम जल्द ही मिलते हैं तब तक अपना ध्यान रखिए और खुश रहिए।
"धन्यवाद दोस्तों"

Story By - Vikram Betal Stories

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