किसी नगर में मांडलिक नाम का राजा राज करता था। उसकी पत्नी का नाम चडवती था। वह मालव देश के राजा की लड़की थी। उसके लावण्यवती नाम की एक कन्या थी। जब वह विवाह के योग्य हुई तो राजा के भाई-बन्धुओं ने उसका राज्य छीन लिया और उसे देश-निकाला दे दिया। राजा; रानी और कन्या को साथ लेकर मालव देश को चल दिया। रात को वे एक वन में ठहरे। पहले दिन चलकर भीलों की नगरी में पहुँचे। राजा ने रानी और बेटी से कहा कि तुम लोग वन में छिप जाओ, नहीं तो भील तुम्हें परेशान करेंगे। वे दोनों वन में चली गयीं। इसके बाद भीलों ने राजा पर हमला किया। राजा ने मुकाबला किया, पर अन्त में वह मारा गया। भील चले गये।
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शेर बनाने का अपराध किसने किया? | 22वीं कहानी | विक्रम-बैताल
कुसुमपुर नगर में एक राजा राज्य करता था। उसके नगर में एक ब्राह्मण था, जिसके चार बेटे थे। लड़के जब बड़े हुए तब उनके पिताजी की मृत्यु हो गई और उनकी मां उनके पिताजी के साथ सती हो गयी। उनके रिश्तेदारों ने उनका धन छीन लिया। वे चारों भाई नाना के यहाँ चले गये। लेकिन कुछ दिन बाद वहाँ भी उनके साथ बुरा व्यवहार होने लगा। तब सबने मिलकर सोचा कि कोई विद्या सीखनी चाहिए। यह सोच कर चारों चार दिशाओं में चल दिये।
सबसे ज्यादा प्रेम में अंधा कौन था? | 21वीं कहानी | विक्रम-बैताल
हर बार की तरह राजा विक्रम ने बेताल को पेड़ से उतारकर, अपने कंधे पर लटका लिया और अपने राज्य की तरफ चलने लगे। चलते समय बेताल ने एक बार फिर राजा से कहा कि मैं तुम्हें एक कहानी सुनाऊंगा जिसका तुम्हें सही उत्तर देना है। यदि तुमने गलत उत्तर दिया तो मैं तुम्हारे सिर के दो टुकड़े कर दूंगा और अगर तुम कुछ बोले तो मैं फिर से उड़ जाऊंगा।
यह कहते हुए बेताल ने अपनी कहानी शुरू की -
विशाला नाम की नगरी में पदमनाभ नाम का राजा राज करता था। उसी नगर में अर्थदत्त नाम का एक साहूकार रहता था। अर्थदत्त के अनंगमंजरी नाम की एक सुन्दर कन्या थी। उसका विवाह साहूकार ने एक धनी साहूकार के पुत्र मणिवर्मा के साथ कर दिया। मणिवर्मा पत्नी को बहुत चाहता था, पर पत्नी उसे प्यार नहीं करती थी।
यह कहते हुए बेताल ने अपनी कहानी शुरू की -
विशाला नाम की नगरी में पदमनाभ नाम का राजा राज करता था। उसी नगर में अर्थदत्त नाम का एक साहूकार रहता था। अर्थदत्त के अनंगमंजरी नाम की एक सुन्दर कन्या थी। उसका विवाह साहूकार ने एक धनी साहूकार के पुत्र मणिवर्मा के साथ कर दिया। मणिवर्मा पत्नी को बहुत चाहता था, पर पत्नी उसे प्यार नहीं करती थी।
बालक क्यों हँसा? | 20वीं कहानी | विक्रम-बैताल
चित्रकूट नगर में एक राजा रहता था। एक दिन वह शिकार खेलने जंगल में गया। घूमते-घूमते वह रास्ता भूल गया और अकेला रह गया। थक कर वह एक पेड़ की छाया में लेटा कि उसे एक ऋषि-कन्या दिखाई दी। उसे देखकर राजा उस पर मोहित हो गया।
विद्या क्यों नष्ट हो गयी? | 18वीं कहानी | विक्रम-बैताल
उज्जैन नगरी में महासेन नाम का राजा राज करता था। उसके राज्य में वासुदेव शर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था, जिसके गुणाकर नाम का बेटा था। गुणाकर बड़ा जुआरी था। वह अपने पिता का सारा धन जुए में हार गया। ब्राह्मण ने उसे घर से निकाल दिया। वह दूसरे नगर में पहुँचा। वहाँ उसे एक योगी मिला। उसे हैरान देखकर उसने कारण पूछा तो उसने सब बता दिया। योगी ने कहा, "लो, पहले कुछ खा लो।" गुणाकर ने जवाब दिया, "मैं ब्राह्मण का बेटा हूँ। आपकी भिक्षा कैसे खा सकता हूँ?"
पापी कौन? | पहली कहानी | विक्रम-बैताल
काशी में प्रतापमुकुट नाम का राजा राज्य करता था। उसके वज्रमुकुट नाम का एक बेटा था। एक दिन राजकुमार दीवान के लड़के को साथ लेकर शिकार खेलने जंगल गया। घूमते-घूमते उन्हें तालाब मिला। उसके पानी में कमल खिले थे और हंस किलोल कर रहे थे। किनारों पर घने पेड़ थे, जिन पर पक्षी चहचहा रहे थे। दोनों मित्र वहाँ रुक गये और तालाब के पानी में हाथ-मुँह धोकर ऊपर महादेव के मन्दिर पर गये। घोड़ों को उन्होंने मन्दिर के बाहर बाँध दिया।
अधिक साहसी कौन?? | 17वीं कहानी | विक्रम-बैताल
चन्द्रशेखर नगर में रत्नदत्त नाम का एक सेठ रहता था। उसको एक लड़की थी। उसका नाम था उन्मादिनी। जब वह बड़ी हुई तो रत्नदत्त ने राजा के पास जाकर कहा कि आप चाहें तो उससे ब्याह कर लीजिए।
राजा ने तीन दासियों को लड़की को देख आने को कहा। उन्होंने उन्मादिनी को देखा तो उसके रुप पर मुग्ध हो गयीं, लेकिन उन्होंने यह सोचकर कि राजा उसके वश में हो जायेगा, आकर कह दिया कि वह तो कुलक्षिणी है, राजा ने सेठ से इन्कार कर दिया।
राजा ने तीन दासियों को लड़की को देख आने को कहा। उन्होंने उन्मादिनी को देखा तो उसके रुप पर मुग्ध हो गयीं, लेकिन उन्होंने यह सोचकर कि राजा उसके वश में हो जायेगा, आकर कह दिया कि वह तो कुलक्षिणी है, राजा ने सेठ से इन्कार कर दिया।
चोर ज़ोर-ज़ोर से क्यों रोया और फिर हँसा? | चौदहवीं कहानी | विक्रम-बैताल
एक बार फिर राजा विक्रमादित्य, बेताल को पेड़ से उतारकर कंधे पर लादकर योगी की ओर बढ़ने लगता है। इस दौरान बेताल फिर से राजा को एक नई कहानी सुनाता है और शर्त वही होती है, अगर राजा ने मुंह खोला तो वो उड़ जाएगा और जवाब पता होते हुए भी नहीं दिया तो राजा की गर्दन को धड़ से अलग कर देगा। बेताल राजा को कहानी सुनाता है…
बहुत साल पहले अयोध्या नगरी में वीरकेतु नाम का एक राजा राज करता था। उसी राज्य में एक साहूकार भी रहता था। धनी साहूकार का नाम था रत्नदत्त। उसकी एक ही सुंदर सी बेटी थी रत्नावती। रत्नावती के लिए कई रिश्ते आए, लेकिन उसने किसी से भी शादी करने के लिए हां नहीं की। इस वजह से उसके पिता काफी परेशान थे। रत्नावती को सिर्फ सुंदर और धनवान नहीं बल्कि बुद्धिमान और बलवान वर चाहिए था।
अपराधी कौन? | 13वीं कहानी | विक्रम-बैताल
बनारस में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसका हरिदास नाम का पुत्र था। हरिदास की बड़ी सुन्दर पत्नी थी। नाम था लावण्यवती। एक दिन वे महल के ऊपर छत पर सो रहे थे कि आधी रात के समय एक गंधर्व-कुमार आकाश में घूमता हुआ उधर से निकला। वह लावण्यवती के रूप पर मुग्ध होकर उसे उड़ाकर ले गया। जागने पर हरिदास ने देखा कि उसकी पत्नी नही है, तो उसे बड़ा दुख हुआ और वह मरने के लिए तैयार हो गया। लोगों के समझाने पर वह मान तो गया; लेकिन यह सोचकर कि तीरथ करने से शायद पाप दूर हो जाये
और पत्नी मिल जाये, वह घर से निकल पड़ा।
और पत्नी मिल जाये, वह घर से निकल पड़ा।
दीवान की मृत्यु क्यूँ? | बारहवीं कहानी | विक्रम-बैताल
कई असफलताओं के बाद राजा विक्रमादित्य ने एक बार फिर बेताल को योगी के पास ले जाने की कोशिश में अपनी पीठ कर लादा और चल पड़े। रास्ता काटने के लिए बेताल ने फिर से राजा को एक नई कहानी सुनानी शुरू की।
बहुत पुरानी बात है, यशकेतु नाम के राजा पुण्यपुर नामक राज्य में राज करते थे। उनका सत्यमणि नाम का एक दीवान था। सत्यमणि बड़ा ही समझदार और चतुर मंत्री था। वह राजा का सारा राज-पाठ संभालता था और विलासी राजा मंत्री पर सारा भार डालकर भोग में पड़ा रहता।
किसका पुण्य बड़ा? | सातवीं कहानी | विक्रम-बैताल
रात के अंधेरे और घने जंगल में कुछ देर भटकने के बाद राजा विक्रमादित्य ने फिर से बेताल को अपनी पकड़ में ले लिया। बेताल ने हर बार की तरह कहानी सुनाने और सवालों का सिलसिला जारी रखा। बेताल ने कहानी सुनाना शुरू किया….
एक समय की बात है, मिथलावती नाम का एक नगर था। वहां गुणधिप नाम के राजा का शासन चलता था। राजा से मिलने के लिए रोजाना दूर-दूर से लोग आया करते थे। एक बार उनसे मिलने और उनकी सेवा करने के लिए किसी राज्य से एक युवक आया। युवक ने राजा से मिलने की बहुत कोशिश की, लेकिन वो राजा से मिल नहीं पाया। अपने साथ युवक जो भी सामान लाया था, वो सब भी खत्म हो गया था।
पत्नी किसकी? | छठी कहानी | विक्रम-बैताल
धर्मपुर नाम की एक नगरी थी। उसमें धर्मशील नाम का राजा राज करता था। राजा का अन्धक नाम का दीवान था। एक दिन दीवान ने कहा, "महाराज, एक मन्दिर बनवाकर देवी को बिठाकर पूजा की जाए तो बड़ा पुण्य मिलेगा।"
राजा ने ऐसा ही किया। एक दिन देवी ने प्रसन्न होकर उससे वर माँगने को कहा। राजा के कोई सन्तान नहीं थी। उसने देवी से पुत्र माँगा। देवी बोली, "अच्छी बात है, तुम्हें बड़ा प्रतापी पुत्र प्राप्त होगा।"
कुछ दिन बाद राजा के एक लड़का हुआ। सारे नगर में बड़ी खुशी मनायी गयी।
राजा ने ऐसा ही किया। एक दिन देवी ने प्रसन्न होकर उससे वर माँगने को कहा। राजा के कोई सन्तान नहीं थी। उसने देवी से पुत्र माँगा। देवी बोली, "अच्छी बात है, तुम्हें बड़ा प्रतापी पुत्र प्राप्त होगा।"
कुछ दिन बाद राजा के एक लड़का हुआ। सारे नगर में बड़ी खुशी मनायी गयी।
असली वर कौन? | पांचवीं कहानी | विक्रम-बैताल
हर बार की तरह राजा विक्रम ने बेताल को पेड़ से उतारकर, अपने कंधे पर लटका लिया और अपने राज्य की तरफ चलने लगे। चलते समय बेताल ने एक बार फिर राजा से कहा कि मैं तुम्हें एक कहानी सुनाऊंगा जिसका तुम्हें सही उत्तर देना है। यदि तुमने गलत उत्तर दिया तो मैं तुम्हारे सिर के दो टुकड़े कर दूंगा और अगर तुम कुछ बोले तो मैं फिर से उड़ जाऊंगा।
यह कहते हुए बेताल ने अपनी कहानी शुरू की -
उज्जैन में महाबल नाम का एक राजा रहता था। उनका हरिदास नाम का एक दूत था, जिसको महादेवी नाम की बड़ी सुन्दर कन्या थी। जब वह विवाह योग्य हुई तो हरिदास को बहुत चिन्ता होने लगी।
इसी बीच राजा ने उसे एक दूसरे राजा के पास भेजा। कई दिन चलकर हरिदास वहाँ पहुँचा। राजा ने उसे बड़ी अच्छी तरह से रखा। एक दिन एक ब्राह्मण हरिदास के पास आया। बोला, “तुम अपनी लड़की मुझे दे दो।”
यह कहते हुए बेताल ने अपनी कहानी शुरू की -
उज्जैन में महाबल नाम का एक राजा रहता था। उनका हरिदास नाम का एक दूत था, जिसको महादेवी नाम की बड़ी सुन्दर कन्या थी। जब वह विवाह योग्य हुई तो हरिदास को बहुत चिन्ता होने लगी।
इसी बीच राजा ने उसे एक दूसरे राजा के पास भेजा। कई दिन चलकर हरिदास वहाँ पहुँचा। राजा ने उसे बड़ी अच्छी तरह से रखा। एक दिन एक ब्राह्मण हरिदास के पास आया। बोला, “तुम अपनी लड़की मुझे दे दो।”
ज्यादा पापी कौन? | चौथी कहानी | विक्रम-बैताल
भोगवती नाम की एक नगरी थी। उसमें राजा रूपसेन राज करता था। उसके पास चिन्तामणि नाम का एक तोता था। एक दिन राजा ने उससे पूछा, "हमारा ब्याह किसके साथ होगा?"
तोते ने कहा, "मगध देश के राजा की बेटी चन्द्रावती के साथ होगा।" राजा ने ज्योतिषी को बुलाकर पूछा तो उसने भी यही कहा।
उधर मगध देश की राज-कन्या के पास एक मैना थी। उसका नाम था मदन मञ्जरी। एक दिन राज-कन्या ने उससे पूछा कि मेरा विवाह किसके साथ होगा तो उसने कह दिया कि "भोगवती नगर के राजा रूपसेन के साथ।"
तोते ने कहा, "मगध देश के राजा की बेटी चन्द्रावती के साथ होगा।" राजा ने ज्योतिषी को बुलाकर पूछा तो उसने भी यही कहा।
उधर मगध देश की राज-कन्या के पास एक मैना थी। उसका नाम था मदन मञ्जरी। एक दिन राज-कन्या ने उससे पूछा कि मेरा विवाह किसके साथ होगा तो उसने कह दिया कि "भोगवती नगर के राजा रूपसेन के साथ।"
पुण्य किसका? | तीसरी कहानी | विक्रम-बैताल
वर्धमान नगर में रूपसेन नाम का राजा राज करता था। एक दिन उसके यहाँ वीरवर नाम का एक राजपूत नौकरी के लिए आया। राजा ने उससे पूछा कि उसे ख़र्च के लिए क्या चाहिए तो उसने जवाब दिया, हज़ार तोले सोना। सुनकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ। राजा ने पूछा, "तुम्हारे साथ कौन-कौन है?" उसने जवाब दिया, "मेरी स्त्री, बेटा और बेटी।" राजा को और भी अचम्भा हुआ। आख़िर चार लोग इतने धन का क्या करेंगे? फिर भी उसने उसकी बात मान ली।
पति कौन? | दूसरी कहानी | विक्रम-बैताल
यमुना के किनारे धर्मस्थान नामक एक नगर था। उस नगर में गणाधिप नाम का राजा राज करता था। उसी में केशव नाम का एक ब्राह्मण भी रहता था। ब्राह्मण यमुना के तट पर जप-तप किया करता था। उसकी एक पुत्री थी, जिसका नाम मालती था। वह बड़ी रूपवती थी।
प्रारम्भ की कहानी | विक्रम-बैताल
बहुत पुरानी बात है। धारा नगरी में गंधर्वसेन नाम का एक राजा राज करते थे। उनकी चार रानियाँ थीं। उनके छह लड़के थे जो सब-के-सब बड़े ही चतुर और बलवान थे। संयोग से एक दिन राजा की मृत्यु हो गई और उनकी जगह उनका बड़ा बेटा शंख गद्दी पर बैठा। उसने कुछ दिन राज किया, लेकिन छोटे भाई विक्रम ने उसे मार डाला और स्वयं राजा बन बैठा। उसका राज्य दिनोंदिन बढ़ता गया और वह सारे जम्बूद्वीप का राजा बन बैठा। एक दिन उसके मन में आया कि उसे घूमकर सैर करनी चाहिए और जिन देशों के नाम उसने सुने हैं, उन्हें देखना चाहिए। सो वह गद्दी अपने छोटे भाई भर्तृहरि को सौंपकर, योगी बन कर, राज्य से निकल पड़ा।
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