आज हम आपको शिव और पार्वती जी की एक पौराणिक कहानी सुनाने जा रहे हैं।
माता पार्वती शिव जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तप कर रही थीं। उनके तप को देखकर देवताओं ने शिव जी से देवी की मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना की। इस पर शिव जी ने पार्वती जी की परीक्षा लेने सप्तर्षियों को भेजा। सप्तर्षियों ने शिव जी के सैकड़ों अवगुण गिनाए पर पार्वती जी को महादेव के अलावा किसी और से विवाह मंजूर न था। विवाह से पहले सभी वर अपनी भावी पत्नी को लेकर आश्वस्त होना चाहते हैं। इसलिए शिव जी ने स्वयं भी पार्वतीजी की परीक्षा लेने की ठानी।
अगले दिन भगवान शिव जी प्रकट हुए और पार्वती जी को वरदान देकर अंतर्ध्यान हुए। इतने में जहां पार्वती जी तप कर रही थीं, वही पास में तालाब में मगरमच्छ ने एक लड़के को पकड़ लिया। लड़का जान बचाने के लिए चिल्लाने लगा। पार्वती जी से उस बच्चे की चीख सुनी न गई। द्रवित हृदय होकर वह तालाब पर पहुंचीं। देखती हैं कि मगरमच्छ लड़के को तालाब के अंदर खींचकर ले जा रहा है।
लड़के ने देवी को देखकर कहा, "मेरी न तो मां है न बाप, न कोई मित्र, माता आप मेरी रक्षा करें!"
पार्वती जी ने कहा, "हे मगरमच्छ! इस लडके को छोड़ दो।"
मगरमच्छ बोला, "मेरा नियम है कि दिन के छठे पहर में जो मुझे मिलता है, उसे मैं अपना आहार समझ कर स्वीकार करता हूं। ब्रह्मदेव ने दिन के छठे पहर इस लड़के को भेजा है। मैं इसे क्यों छोडूं?"
पार्वती जी ने विनती, "तुम इसे छोड़ दो! बदले में तुम्हें जो चाहिए वह मुझसे कहो।"
मगरमच्छ बोला, "एक ही शर्त पर मैं इसे छोड़ सकता हूं। आपने तप करके महादेव से जो वरदान लिया, यदि उस तप का फल मुझे दे दोगी तो मैं इसे छोड़ दूंगा।"
पार्वती जी तैयार हो गईं। उन्होंने कहा, "मैं अपने तप का फल तुम्हें देने को तैयार हूं लेकिन तुम इस बालक को छोड़ दो।"
मगरमच्छ ने समझाया, "सोच लो देवी! जोश में आकर संकल्प मत करो। हजारों वर्षों तक जैसा तप किया है वह देवताओं के लिए भी संभव नहीं। उसका सारा फल इस बालक के प्राणों के बदले चला जाएगा।"
पार्वती जी ने कहा, "मेरा निश्चय पक्का है! मैं तुम्हें अपने तप का फल देती हूं। तुम इसका जीवन दे दो।"
मगरमच्छ ने पार्वती जी से तपदान करने का संकल्प करवाया। तप का दान होते ही मगरमच्छ का देह तेज से चमकने लगा।
मगरमच्छ बोला, "हे पार्वती, देखो तप के प्रभाव से मैं तेजस्वी बन गया हूं। तुमने जीवन भर की पूंजी एक बच्चे के लिए व्यर्थ कर दी। चाहो तो अपनी भूल सुधारने का एक मौका और दे सकता हूं।"
पार्वती जी ने कहा, "हे ग्राह! तप तो मैं पुन: कर सकती हूं, किंतु यदि तुम इस लड़के को निगल जाते तो क्या इसका जीवन वापस मिल जाता?"
देखते ही देखते वह लड़का अदृश्य हो गया और मगरमच्छ भी लुप्त हो गया।
पार्वती जी ने विचार किया, "मैंने तप तो दान कर दिया है। अब पुन: तप आरंभ करती हूं। पार्वती ने फिर से तप करने का संकल्प लिया।"
भगवान सदाशिव फिर से प्रकट होकर बोले, "पार्वती! भला अब क्यों तप कर रही हो?"
पार्वती जी ने कहा, "प्रभु! मैंने अपने तप का फल दान कर दिया है। आपको पतिरूप में पाने के संकल्प के लिए मैं फिर से वैसा ही घोर तप कर आपको प्रसन्न करुंगी।"
महादेव बोले, "मगरमच्छ और लड़के दोनों रूपों में मैं ही था। तुम्हारा चित्त प्राणिमात्र में अपने सुख-दुख का अनुभव करता है या नहीं, इसकी परीक्षा लेने को मैंने यह लीला रची। अनेक रूपों में दिखने वाला मैं एक ही एक हूं। मैं अनेक शरीरों में, शरीरों से अलग निर्विकार हूं। तुमने अपना तप मुझे ही दिया है इसलिए अब और तप करने की जरूरत नहीं!"
देवी ने महादेव को प्रणाम कर प्रसन्न मन से विदा किया।
इस तरह मां पार्वती जी, शिव भगवान जी की परीक्षा में सफल हुई।
आशा करती हूं कि आपको यह कहानी पसंद आई होगी। अगर आपके पास भी कोई शिव शंकर जी की कहानी हो तो हमें जरूर भेजें। आप सभी को शिवरात्रि की बहुत-बहुत बधाई। अपना ध्यान रखिए और खुश रहिए। हम जल्द ही एक नई कहानी के साथ आपसे मिलते हैं।
Story By - Mythological ShivJi Stories
Post By - Khushi
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