राजा अपनी बेटी इंद्राणी से बहुत प्यार करता था, वह अपनी बेटी इंद्राणी की खुशी के लिए उसकी हर ख्वाहिश पूरी करता था। इंद्राणी 5 साल की थी। वह जो भी खिलौने मांगती, उसे वह तुरंत मिल जाते। जो भी चीज उसे अच्छी लगती राजा उसे लाकर दे देता। ऐसा करने के कारण इंद्राणी बहुत ही ज़िद्दी हो गई थी।
एक दिन इंद्राणी अपने कमरे की खिड़की के पास खेल रही थी। खिड़की के बाहर एक बड़ा सा आम का पेड़ था, उसके ऊपर चमकदार खूबसूरत चांद दिख रहा था। चांद को देखकर इंद्राणी को लगा यह तो बहुत ही खूबसूरत चमकदार खिलौना है, मैं इस चांद के साथ ही खेलूंगी।
अगले दिन इंद्राणी ने राजा के पास जाकर ज़िद की, कि उसे वह चांद तोड़कर चाहिए, ताकि वह उसके साथ खेल सके। राजा ने इंद्राणी को समझाने की बहुत कोशिश की, चांद तो आसमान में है, उसे कोई तोड़कर नहीं ला सकता। यह सुनकर इंद्राणी खूब रोने लगी, उसने खाना-पीना भी छोड़ दिया, इस कारण से इंद्राणी की तबीयत खराब होने लगी।
राजा ने बड़े-बड़े वैद्य बुलवाएं, पर कोई इंद्राणी को ठीक नहीं कर पा रहा था। एक वैद्य ने आकर कहा कि जब तक आप उसकी इच्छा पूरी नहीं करेंगे, वह इसी तरह रोती रहेगी और खाएगी नहीं, जिस कारण से वह ठीक नहीं हो पाएगी।
अपनी बेटी को चांद के लिए बीमार देखते हुए, राजा बेहद दुखी रहने लगा। अंत में अपनी बेटी के प्रेम में आकर राजा ने घोषणा करवाई कि जो भी व्यक्ति उनकी बेटी के लिए चांद तोड़ कर लाएगा, उसे मुंह मांगा इनाम दिया जाएगा। राजा की घोषणा सुनकर पूरी प्रजा के लोग राजा पर हंसने लगे, लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि राजा इतना बुद्धिमान होने के बावजूद भी ऐसी बेवकूफी भरी घोषणा कैसे कर सकते हैं।
उसी राज्य में एक बुद्धिमान व्यक्ति था, उसका गहनों का व्यापार था। जब उसने घोषणा सुनी तो वह समझ गया कि राजा अपनी बेटी के प्रेम में आकर ऐसी घोषणा कर रहे हैं। उसने सोचा कि राजा अच्छे इंसान हैं और उनकी बेटी काफी बीमार है, क्यों ना मैं जाकर उनकी मदद करूं।
अगले दिन व्यापारी राजा के पास गया। उसने कहा कि मैं आपके लिए चांद तोड़कर ला सकता हूं, पर मुझे आपकी बेटी से थोड़ी देर के लिए बात करनी है। राजा यह सुनकर आश्चर्यचकित हो गए, उन्होंने इंद्राणी को व्यापारी से मिलाया।
व्यापारी ने इंद्राणी से पूछा - 'मैं आपके लिए चांद लेकर आऊंगा, पर आप क्या मेरे कुछ सवालों का जवाब दे दोगे?'
इंद्राणी ने हां में जवाब दीया।
व्यापारी ने पूछा - 'चांद कितना बड़ा है?'
इंद्राणी ने मासूमियत से कहा - 'मेरी उंगली जितना! मैं जब भी चांद को देखती हूं और नापति हूं, तब वह मेरे उंगली जितना बड़ा दिखता है।'
व्यापारी ने फिर से पूछा - 'चांद कितना ऊंचा है और वह कहां रहता है?'
इंद्राणी ने कहा - 'आम के पेड़ जितना, वह मेरे कमरे की खिड़की से आम के पेड़ के ऊपर दिखता है।'
आखिरी में व्यापारी ने पूछा - 'चांद कैसा दिखता है?'
इंद्राणी ने कहा - 'वह सफेद चमकीला चांदी की जैसे दिखता है।'
व्यापारी सब कुछ समझ गया था। उसने हंसकर इंद्राणी से कहा कि मैं कल सुबह आपके लिए चांद ले आऊंगा, पर आज आप अच्छे से खाना खा लेना और दवाई भी लेना, ताकि कल आप अपने चांद के साथ खेल सको। इंद्राणी ने हां में सिर हिलाया। इतना बोलते ही व्यापारी ने राजा से विदा ली और कल सुबह चांद लेकर आने की बात बोली।
उस पूरे दिन इंद्राणी रोई नहीं, उसने अच्छे से खाना खाया और दवाई ली। वह अपने चांद का इंतजार कर रही थी। यह देखकर राजा को राहत मिली, पर उसे काफी चिंता भी थी कि अगर व्यापारी चांद ला नहीं पाया तो क्या होगा।
अगली सुबह व्यापारी महल में फिर से आया, आते ही उसने इंद्राणी से कहा कि मैं आपके लिए चांद तोड़ कर ले आया हूं और यह बोलते ही उसने इंद्राणी के हाथ में एक छोटा चांद रख दिया। वह चांद छोटा सा चूड़ी के आकार का चांदी का बना हुआ था। इंद्राणी अपने चांद को देखते ही बहुत खुश हो गई। वह दिन भर अपने चांद के साथ खेलती रही।
राजा अपनी बेटी को खुशी से खेलते हुए देख बेहद खुश हुआ। उसने व्यापारी को धन्यवाद दीया, परंतु अभी भी राजा चिंतित था। उसने व्यापारी से कहा कि अगर इंद्राणी ने आज फिर से रात में असली चांद देख लिया तो क्या होगा। शाम होने ही वाली थी। व्यापारी ने राजा से कहा कि उसके पास इस चीज का भी हल है।
व्यापारी ने इंद्राणी से पूछा - 'क्या आपको पता है कि जब दांत टूट जाता है तो क्या होता है?
इंद्राणी ने मासूमियत से कहा - 'उस जगह पर नया दांत आ जाता है।'
व्यापारी ने कहा - 'बिल्कुल सही! अब बताओ चांद अगर टूट गया है तो क्या होगा?'
इंद्राणी ने हंसकर जवाब दिया - 'वहां पर नया चांद आ जाएगा।'
व्यापारी ने हंसकर कहा 'हां! ऐसा ही होगा। चलो हम खिड़की के बाहर नए चांद को देखते हैं।'
इतना बोल कर व्यापारी ने इंद्राणी के कमरे से चांद की ओर इशारा किया। इंद्राणी ने चांद को देखा और कहा कि मुझे तो अपना चांद ही पसंद है। इतना बोल कर इंद्राणी अपने चांद के साथ खेलने में व्यस्त हो गई।
राजा यह सब देखकर बेहद खुश हुए और उन्होंने व्यापारी से उसका मुंह मांगा इनाम मांगने को कहा। व्यापारी ने राजा से उसे राजा का मंत्री बनाने की विनती की। राजा ने व्यापारी से कहा कि उन्हें बेहद खुशी होगी अगर इतना समझदार मंत्री उनके पास होगा, जो कोई भी विपत्ति का उपाय बता पाए। इतना बोलते ही राजा ने महल में घोषणा करी कि आज से यह व्यापारी हमारा नया मंत्री है।
राजा और व्यापारी अच्छे से राज्य चलाने लगे और इंद्राणी हर दिन अपने छोटे से चांद के साथ खेला करती थी।
शिक्षा -
प्यारे दोस्तों! "कई बार जो विपत्ति बड़ी लगती है, उसका छोटी सी चीज में उपाय मिल जाता है, बस हमें अपनी सूझबूझ से सोचने की जरूरत है।"
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Story By - Khushi
Inspired By - Internet
Post By - Khushi
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