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कबीर दास जी के दोहे! | Kabir Das Dohe #8
दोहा 1 -
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
कबीर कहना चाहते हैं -
जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते।
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
कबीर कहना चाहते हैं -
जो प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ ले कर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पाते।
पहले बूढ़े और उसकी हिरनी की कहानी | 4th Story | अलिफ लैला
हिरनी वाले बूढ़े ने कहानी सुनाना शुरू की!!
वृद्ध बोला, "हे दैत्यराज, अब ध्यान देकर मेरा वृत्तांत सुनें।" यह हिरनी मेरे चचा की बेटी और मेरी पत्नी है। जब यह बारह वर्ष की थी तो इसके साथ मेरा विवाह हुआ। यह अत्यंत पतिव्रता थी और मेरे प्रत्येक आदेश का पालन करती थी। किंतु जब विवाह को तीस वर्ष हो गए और इससे कोई संतान नहीं हुई तो मैंने एक दासी मोल ले ली क्योंकि मुझे संतान की अति तीव्र अभिलाषा थी।
वृद्ध बोला, "हे दैत्यराज, अब ध्यान देकर मेरा वृत्तांत सुनें।" यह हिरनी मेरे चचा की बेटी और मेरी पत्नी है। जब यह बारह वर्ष की थी तो इसके साथ मेरा विवाह हुआ। यह अत्यंत पतिव्रता थी और मेरे प्रत्येक आदेश का पालन करती थी। किंतु जब विवाह को तीस वर्ष हो गए और इससे कोई संतान नहीं हुई तो मैंने एक दासी मोल ले ली क्योंकि मुझे संतान की अति तीव्र अभिलाषा थी।
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