अपने इस स्वभाव के कारण उसने एक दिन विचार किया कि बग़ीचा तो है मेरे श्रम की देन, लेकिन भूमि जमींदार की है। अतः इन मीठे अंगूरों मे से उसे भी कुछ भाग मिलना चाहिए अन्यथा ये मेरा उसके प्रति अन्याय होगा और मैं ईश्वर के सामने मुँह दिखाने योग्य नही रहूँगा।
यह सोचकर बिरजू किसान ने प्रतिवर्ष जमींदार के घर कुछ मीठे अंगूर भेजने शुरू कर दिए। उधर, जमीदार स्वादिष्ट मीठे अंगूर खा कर लालची हो गया, उसने सोचा कि अंगूर की बेल मेरी जमीन पर है, इसलिए उस पर मेरा पूर्ण अधिकार है। मैं उसे अपने बग़ीचे मे लगा सकता हूँ।
लोभ के अंधकार मैं जमींदार में आव देखा ना ताव और अपने नौकरों को आदेश दिया की बेल उखाड़कर मेरे बग़ीचे मे लगा दो।
नौकरों ने मालिक की आज्ञा का पालन किया। बेचारा बिरजू असहाय था। वह सिवाय पछताने के क्या कर सकता था।
अंगूर की बेल जमींदार के बग़ीचे में लगा दी गई, लेकिन फल देने की बात तो दूर रही बेल कुछ ही दिनों में सूख गई। उस लोबी जमींदार को तो अंगूर ना मिले साथ ही बिचारे बिरजू को भी अपना अंगूरों से हाथ धोना पड़ा।
शिक्षा -
प्यारे दोस्तों! "लालच में आकर हम दूसरों का नुकसान तो करते ही हैं, साथ में अपना नुकसान भी कर बैठते हैं।"
यदि आपको यह कहानी पसंद आई हो तो हमें कमेंट बॉक्स में लिख कर जरूर बताएं और अगर आप लोगों के पास भी बच्चों की मजेदार कहानियां हो तो हमें लिखकर भेजना ना भूले। दोस्तों! हमारी वेबसाइट को आपके सहयोग और प्यार की जरूरत है, इसलिए हमारी पोस्ट को शेयर करना ना भूले। आप सभी के सहयोग का बहुत-बहुत धन्यवाद।
हम जल्द ही आपसे अगली कहानी के साथ मिलेंगे। तब तक अपना ध्यान रखिए और खुश रहें।
Story By - Inspired by the Internet
Post By - Khushi
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.