दोहा 1 -
संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत।
चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।।
कबीर कहना चाहते हैं -
जो लोग सज्जन होते हैं उनसे चाहे कितने भी दुष्ट लोग मिलें, फिर भी सज्जन पुरुष अपने भले स्वभाव को नहीं छोड़ता। जैसे कि चंदन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर फिर भी वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता।
संत ना छाडै संतई, जो कोटिक मिले असंत।
चन्दन भुवंगा बैठिया, तऊ सीतलता न तजंत।।
कबीर कहना चाहते हैं -
जो लोग सज्जन होते हैं उनसे चाहे कितने भी दुष्ट लोग मिलें, फिर भी सज्जन पुरुष अपने भले स्वभाव को नहीं छोड़ता। जैसे कि चंदन के पेड़ से सांप लिपटे रहते हैं, पर फिर भी वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता।