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रक्षाबंधन से संबंधित पौराणिक कहानियां | Mythological Story

हमारे यहां पर रक्षाबंधन सालों से मनाया जा रहा है। इस दिन बहन अपने भाई को राखी बांधती है और साथ में मिठाई और नारियल देकर उसे तिलक करती है। बहन अपने भाई की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती है। बदले में भाई अपनी बहन की रक्षा करने का वादा करता है और उससे प्यार और तोहफा देता है। यह त्यौहार भाई और बहन के प्यार को दर्शाता है।

रक्षाबंधन की शुरुआत कब से हुई इसकी कोई निश्चित जानकारी तो नहीं है परंतु पुराणों में ऐसी बहुत   सारी कहानियां है जो रक्षाबंधन के पर्व को बताती है। आज हम आपसे ऐसी ही कुछ पौराणिक कहानियां शेयर करेंगे।


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रक्षाबंधन से संबंधित पौराणिक कहानियां

गणेश जी का जन्म | Mythological Story

एक दिन पार्वती माता को स्नान करने जाना था। परंतु वहां पर कोई भी रखवाली के लिए नहीं था। इसलिए उन्होंने स्वयं ही चंदन के लेप द्वारा एक बालक को उत्पन्न किया। माता पार्वती ने उस बालक का नाम गणेश रखा और साथ ही उसे अपना पुत्र माना।

माता पार्वती ने गणेश जी को आदेश दिया कि "मैं स्नान करने जा रही हूं। जब तक मैं स्नान करके ना आऊं, मेरी अनुमति के बिना तुम किसी को भी घर के अंदर मत आने देना।"

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अन्धी बुढिया की चतुराई से गणेशजी हुए प्रसन्न | Mythological Story

आज हम जो कहानी शेयर कर रहे हैं यह गणेश जी की बहुत ही प्रसिद्ध कहानी है। इससे ना सिर्फ कहानी के रूप में बल्कि कई व्रत में कथा के रूप में भी सुनाया जाता है।

एक अन्धी बुढिया थी जिसका एक लड़का और बहु थी। वो बहुत गरीब था। वह अन्धी बुढिया नित्यप्रति गणेश जी की पूजा किया करती थी। गणेश जी साक्षात् सन्मुख आकर कहते थे कि बुढिया माँ तू जो चाहे सो मांग ले| बुढिया कहती है, मुझे मांगना नहीं आता तो कैसे और क्या मांगू। तब गणेश जी बोले कि अपने बहु बेटे से पूछकर मांग ले।

तब बुढिया ने अपने पुत्र और बहू से पूछा तो बेटा बोला कि धन मांग ले और बहु ने कहाँ की पोता मांग लें । तब बुढिया ने सोचा कि यह तो अपने-अपने मतलब की बातें कर रहे है।अतः इस बुढिया ने पड़ोसियों से पूछा तो, पड़ोसियों ने कहा कि बुढिया तेरी थोड़ी सी जिंदगी है। क्यूँ मांगे धन और पोता, तू तो केवल अपने नेत्र मांग ले जिससे तेरी शेष जिंदगी सुख से व्यतीत हो जाए।

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वैभव लक्ष्मी व्रत कथा | Vaibhav Laxmi Vrat Katha In Hindi | Mythological Story | Vrat Katha

यह कहानी जो मैं आज आपके साथ शेयर कर रही हूं, यह वास्तव में एक कथा है जो कि वैभव लक्ष्मी व्रत में पढ़ी जाती है। बचपन से ही मेरी माँ हर शुक्रवार को यह व्रत करती थी और यह कहानी पढ़ती थी  इस कारण से आज भी यह कहानी मेरे लिए बहुत ही विशेष है। हमने इस कहानी में कोई भी परिवर्तन नहीं किया है, जैसा पुस्तक में दी हुई थी एकदम वैसी की वैसी ही यह कहानी हमने लिखी है।

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