बहुत प्रयासों के बाद भी बादशाह और सिपाही राजमहल जाने का मार्ग नहीं ढूंढ पाए। सभी चिंतित हो उठे। कुछ और आगे बढ़ने पर उन्हें एक तिराहा दिखाई पड़ा। जिसे देख उनमें उम्मीद बंध गई, कि इनमें से कोई न कोई मार्ग उन्हें अवश्य राजमहल तक ले जायेगा। लेकिन उलझन ये थी, कि किस मार्ग पर आगे बढ़े। तभी उन्होंने देखा कि एक बालक सड़क किनारे खड़ा होकर उन्हें घूर-घूरकर देख रहा है। सिपाही उसे पकड़कर बादशाह के समक्ष ले आये।
बादशाह ने उससे कड़क स्वर में पूछा, “ऐ बालक, आगरा के लिए कौन सी सड़क जाती है?”
प्रश्न सुनकर वह बालक मुस्कुराने लगा, फिर बोला, “महाशय, ये सड़क तो चल नहीं सकती। फिर आगरा कैसे जाएगी? जाना तो आपको ही पड़ेगा।” कहकर वह फिर खिलखिलाने लगा।
उसका ये व्यंगात्मक उत्तर सुनकर सभी सैनिक भौचक्के रह गए। वे बादशाह के गुस्से से वाकिफ़ थे। वे मौन खड़े ये सोचने लगे कि अब इस लड़के की खैर नहीं। वह बालक इतने में ही नहीं रूका और आगे बोला, “महाशय, लोग चलते है, रास्ता नहीं।”
बादशाह उस बालक की निर्भीकता और वाकपटुता से बहुत प्रभावित हुए और प्रसन्न मुद्रा में बोले, “ठीक कहते हो बालक। ये तो बताओ तुम्हारा नाम क्या है?”
“मेरा नाम महेश दास है।” बालक ने उत्तर दिया। साथ ही प्रश्न भी कर दिया, “और आपका नाम महाशय?”
“तुम बादशाह अकबर – हिन्दुस्तान के सम्राट से बात कर रहे हो।” कहकर बादशाह ने अपनी ऊँगली से अंगूठी निकाली और उसे उस बालक को देते हुए कहा, “बालक, मुझे निडर लोग बहुत पसंद है। तुम मेरे दरबार में आना और पहचानस्वरूप मुझे ये अंगूठी दिखाना। मैं तुम्हें तुरंत पहचान लूँगा। अब तो बता दो कि मैं किस रास्ते पर चलूँ कि आगरा पहुँच जाऊं।
बालक ने बादशाह के अदब में सर झुकाया और उन्हें आगरा जाने का मार्ग बताया। बादशाह आगरा के मार्ग पर चल पड़े।
इस तरह बादशाह अकबर पहली बार महेश दास (जो कि आगे चलकर बीरबल के नाम से जाने गए) से मिले।
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Story By :- Akbar Birbal Stories
Post By :- Khushi
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